________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः दीर्घपत्रक' नामापि, रसोनो गृजनो भवेत् // 2143 // __* भृङ्गराजनामानि * भृङ्गरजो' भृङ्गरागो, मार्कवः केशरञ्जनः / * विभिन्नशाकनामानि * वायसी' काकमाची च, शाकार्थेषु विशेषतः // 2144 // प्रसिद्धः कारवेल' इच, कटल्लक स्तथैव च / कटिल्लक: कठिल्लकः, सुषवी' सुसवी पुन: // 2145 // कूष्माण्डक' श्च, कर्कारु:२, कोशातकी' पटोलिका। चिर्भटी' चिभिटी' चैव, वालुङ्को कर्कटी तथा // 2146 // एवारु' नपुसो चोर्वा ह° श्चोर्वालु पुनः खलु / एलु श्चेति नामानि, कर्कटयाः कथयन्ति वै // 2147 // सूरणः' सुरणः२ कन्दो', भवेदर्शोघ्न इत्यपि / प्रसिद्धमाऽऽर्द्र कं' चैव श्रृङ्गाबेरक मुच्यते // 2148 // तिक्तपत्रः' किलासघ्नः२, कर्कोटक: सुगन्धक: / सेकिम' हरिपरणं च, मूलक हस्तिदन्तकम् // 2146 // ॐ तृणादिनामानि 8 तृणं' नडादि नीवारा-दिकं शष्पं तु तन्नवम् / कसृणं शैहिषं पोरं, देवजग्धं सौगन्धिकम् // 2150 //