________________ [ 3 ] राजस्थानान्तर्गत मरुधर देश में आये हुए श्रीराणकपुरजी तीर्थ तथा श्री वरकाणाजी तीर्थ समीपवर्ती मुण्डारागांव में अभूतपूर्व शासन प्रभावना पूर्वक 61 घोड के उद्यापनादि महामहोत्सव युक्त हुई थी। उसी प्रसंग पर प्रापश्री को प्राचार्य पदवी के साथ साथ 'शाख विशारद' 'साहित्यरत्न' और 'कविभूषण' इन तीन पदों से भी समलङ्कृत किये थे। प्रापश्री मे जैन धर्म के विद्यमान 45 आगम के योगोद्धहन विधिपूर्वक किये हैं। श्रीवीशस्थानक तप की और श्री नवपदजी महाराज को अोली को भी प्राराधना विधिपूर्वक को है। श्रीवर्द्धमानतप की 36 मी अोली की आराधना हो गई है। तीर्थाधिराज श्रीसिद्धगिरीजी महातीर्थ की विधिपूर्वक 66 यात्रा और चोवीहारा छट्ठ कर के दो दिन में सात यात्रा भी कर ली है। तदुपरान्त सूरिमन्त्र के पश्चप्रस्थान की विधिपूर्वक पञ्चपोली युक्त सम्यग् आराधना की है। प्रापश्री का ... प्रतिदिन 108. बार सूरिमन्त्र का अखण्ड जाप अद्यावधिचालू है। नित्य प्रात्मरक्षा नवकार मन्त्र, सात स्मरण, जिनपञ्जरस्तोत्र, ग्रहशान्तिस्तोत्र, श्रीपार्श्वनाथ मन्त्राधिराजस्तोत्र, पोऋषिमण्डलस्तोत्र, श्रीतत्त्वार्थाधिगम सूत्र, शत्रुञ्जयलघुकल्प पौर श्रीगौतमाष्टक प्रादि का स्वाध्याय भी अद्यावधि चालू है।