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________________ पुरोवचन [ थ (2) जैनकवि श्री अमसिंहजी ने 'अमरकोष' नामक ग्रन्थ का निर्माण नवमी शताब्दी में किया है / (3) महाकवि 'श्री धनपाल' ने 'पाइपलच्छी नाममाला' नामक पद्यबद्ध कोषग्रन्थ का प्राकृत भाषा में वि.सं. 1029 में सर्जन किया है। (4) कलिकाल सर्वज्ञ 'श्री हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज श्री' ने चार कोषों का निर्माण किया है। जिनमें से 'अभिधान चिन्तामणि' नामक कोष मुख्य है। इसमें एक-एक शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्दों का संकलन सुन्दर है / दूसरा 'अनेकार्थ संग्रह' नामक कोष है / इसमें शब्दों के नाना अर्थों का संग्रह है। तीसरा 'अनेकार्थ निघण्टु' नामक कोष है। इसमें वनस्पत्यादिक पदार्थों के शब्दार्थों का संग्रह है। चौथा 'देशीनाममाला' नामक कोष है। इसमें प्राकृत और देशीय भाषाओं के शब्दार्थों का संकलन है। (5) सेनसंघ के 'प्राचार्य श्रीधरसेन' ने 'विश्वलोचन' नामक कोष का सर्जन किया है जिसका दूसरा नाम 'मुक्तावली कोष' है। उन्होंने एक 'अन्त्याक्षरी' नामक कोष की भी रचना की है। (6) प्राचार्य श्री राजशेखरसूरि म. के शिष्यरत्न 'श्री सुधाकलश मुनिपुङ्गव' ने 'एकाक्षरी नाममाला' नामक कोष की रचना की है। .. (7) 'प्राचार्य श्री जिनदत्तसूरि म.' के शिष्यरत्न 'श्री अमरचन्द्र मः' ने वर्णमाला क्रम से प्रत्येक अक्षर का अर्थ बताते हुए 'एकाक्षरी नाममाला' नामक कोष की रचना की है। ... (8) प्राचार्य श्रीजिनभद्रसूरि म. ने 'पञ्चधर्मपरिहारनाममाला' नामक कोष की रचना की है। (9) प्राचार्य श्रीविमलसूरि म. ने 'देश्य शब्द समुच्चय' एवं अकारादि क्रम से 'देश्य शब्द निघण्टु' कोष की रचना की है।
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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