________________ षष्ठः सामान्य विभागः उसाहो' किमुतारे हो च, किम -त५ कि वितर्कके // 2768 // इतिह' संप्रदाये स्यात्, हेतौ यत्' तद् यत स्ततः / येन तेना ऽपि हेत्वर्थे, कथ्यते पण्डितै रिह // 2766 // सम्बोधतेऽङ्ग' रे२ रेरे, ररे ऽरे भो स्तथाऽयि च / हे है हंहो' तथा हो' च, . पाट२ प्याट् पुन निगद्यते // 2800 // श्रौषट्' वौषट् वषट् स्वाहा , स्वधा' देवहविहुं तो। देवतार्थे तु स्वाहा स्यात्, स्वधा स्यात् पितृकर्मणि // 2801 // भवेदुपांशु' गुप्तार्थे, शब्दोऽयमिति ज्ञायताम् / मध्येऽन्त' -रन्तरेण स्यादऽन्तरा च तथाऽन्तरे // 2802 // प्रकाशे प्रादु'-रावि:' स्याद ऽभावे त्व' न नो नहि / बलात्कारे प्रसह्य' स्याद् मा.तु मास्म हि वारणे // 2803 // प्रस्त'-मऽदर्शने कामरे, त्वकामानुमतौ भवेत् / प्रों' प्रां तथा च परमं संमते संप्रयुज्यते // 2804 // . कचिदिष्टपरिप्रश्ने, कथ्यते कोविदः किल / अवश्य' मथ नूनं च, निश्चये हि निगद्यते // 2805 // बहिर्भवे बहिः' स्याद् ह्य-स्त्वतोतेऽह्नि श्व' एष्यति / नीचे'-रऽल्पे एनः प्रोक्तं, महत्युच्च' स्तु मन्यते // 2806 //