________________ चतुर्थस्तिर्यविभागः 351 अरण्यज स्तिलः ख्यातो, जत्तिलः' कथ्यते बुधैः // 2126 // वन्ध्यं षष्ढतिल:' स्याच्च, तिलादी पिञ्ज'-पेजको / तन्तुभ' स्तुन्तुभो लोके, सर्षप: स्यात् कदम्बकः // 2127 // श्वेतवर्णः सर्षप स्तु, सिद्धार्थः' श्वेतसर्षप:२ / शमीधान्य' मनेकस्य, मुद्गादे नाम मन्यते // 2128 // शूकधान्यं' यवादीनां, नाम प्रख्यापितं किल / सस्यशूक' च किंशारु:, धान्यानो भाग उच्यते // 2126 // करिणशं' कनिश चैव, करिगष: सस्यशीर्षकम् / सस्यमञ्जरी नामांपि, कथ्यते कनिशस्य वै // 2130 // स्तम्बो' गुच्छो धान्यमूले, नालं' काण्डो भवेत् पुनः / पलाल' श्च पलो ऽफलः, स्यात् तु वै धान्यत्वक् तुषः // 2131 // बुसे' कडङ्गरो' बुषं३, चेति नामानि सन्ति वै। प्रावसितं' तथा धान्यं 2, रिद्ध माऽऽवासितं पुनः // 2132 // ऋद्धं सिद्ध सुसम्पन्नं ; चेति नामानि सन्ति हि। शूर्पादिना स्वच्छभूतं, पूतं' स्यान्निर्बुसीकृतम् // 2133 // धान्ये परिष्कृते लोकः, कथ्यते वहुलोकृतम् / _____* मूलादिनामानि के मूलं' पत्रं हि वृक्षादेः, प्रसिद्ध फलमित्यपि // 2134 // करीर' मस्ति वंशस्यां-कुरे ऽयं पूर्वभागतः /