________________ ( 35 ) 45555555555555555555555555 // श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः // पूज्यपाद आचार्य भगवान् श्रीमद्विजयसुशील सूरीश्वरजो * महाराज साहेबनी सादर सेवामां. 卐 सादर वंदना सुखशाता. के साथे बे दिवसना पाप कृपालुना परिचयथी घणोज आनंद अनुभव्यो छे. तेमां विशेष प्राप श्री संस्कृत व्याकरण म आदिमां निष्णात छो, प्रावो अनुभव परोक्षमा हतो ते अनुभव प्राजे प्रापश्रीजीए श्रीअभिधान चिन्तामणी वगेरे शब्दकोशनी एक तादृश्य प्रतिभाशाली रुपरेरवा समान अालेखेल " सुशीलनाममाला" ग्रंथना तैयार फर्मा जोइने घणोज प्रानंद अनुभव्यो छे. अभिधानचिन्तामणि- परकोश-धनञ्जयनाममाला प्रादि शब्दकोश करता पण बालजीवो माटे मा कृति घणा ज विशेष प्रमाणमां उपकारी नीवडशे, कारण के आवा महान् दलदार ग्रंथमा आपश्रीजीए घणोज सुदर शैलीथी जे शब्दोनी रचना पद्धति गोठवी छे जे पा कठीण ग्रंथमाथी पण बालजीवो सहेलाइथी कोइ पण शब्द लिंग प्रादि साथे सारी रीते समजी शकशे. पाप कृपालुनी प्रा प्रवृत्ति घणीज अनुमोदनरूप छ। . ली० गुणानुरागो दिनाङ्क प्राचार्य विजय सोमचन्द्र सरि . . 26-11-76 श्रीहोरसूरीश्वरजी जैन उपाश्रय . सिरोही, ( राजस्थान ). 555555555555555555555