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________________ तृतीयो मर्त्य विभागः 65 * ऊर्ध्वजानुकनामानि * ऊर्ध्वशः' पुरुषो ज्ञेय,-उध्वजु रूख़जानुकः // 695 // के विरलजानुकनामानि * विरलजानुकः' प्रज्ञः२, प्रजु श्चेत्यपि मन्यताम् / * युतजानुनामानि * संजुः' संज्ञः श्लिष्टजानु, युतजानु श्च कथ्यते // 696 // * वलिननाम * वलिनो' वलिभः कोऽपि, दग्धचर्मा जनो भवेत् ! * दन्तुरनाम * उदग्रदन् दन्तुरः स्याद्, यस्य दन्ता बहिः स्थिताः // 697 // * मुष्क रनाम * मुष्कर' च प्रलम्बाण्डो जनो लम्बाण्ड उच्यते / * अन्धनामानि * गताक्षो' ऽनेडमको इन्ध', श्चक्षुतिकल उच्यते // 698 // * उन्मुखनाम * उत्पश्यः' कथ्यते सोऽत्र, यस्तिष्ठेदुन्मुखः२ सदा / * अधोमुखनामानि * प्रवाङ न्युज श्च विज्ञेयः, सर्वत्राऽधोमुखो जनः // 66 // *मक
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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