________________ 218 सुशीलनाममालायो भूतयज्ञस्य नामाऽस्ति, भूतयज्ञ' स्तथा बलि: / प्रोक्ता एते महायज्ञाः', पञ्चापि वै महीतले // 1371 / / यज्ञोयः शुक्लपक्षान्ते, स पौर्णमास उच्यते / दर्शो ऽपि कृष्णपक्षान्ते, प्रामावास्यश्च मन्यते // 1372 / / सौमिकी' दीक्षणीयेष्टिः२, स्याद् दीक्षा' व्रतसङ्ग्रहः / सुगहना वृतिः कुम्बा', वेदो' भूमिः परिष्कृता // 1373 // चत्वरं' स्थण्डिलं यज्ञा ऽसंस्कृत भूमि रुच्यते / पशुहिंसायज्ञस्तम्भः, स्याद् यूपो' यज्ञकोलक: // 1374 // चषाल' चापि वै यूप-कटक:२ कथ्यते किल / यजयूपाग्रभागे यद्, वलयाकार वस्तु तद् // 1375 // घृतावनि' स्तथा यूप-कर्णो वै कथ्यते सदा। घृतस्पर्शयज्ञस्तम्भ-स्यैकभागः स मन्यते // 1376 // यूपस्याग्रविभागो वै, यूपाग्रभाग' उच्यते / तर्म वै कथ्यते नाम, निर्मन्थदारु' चाऽरणिः // 1377 // * अग्नि भेदा: * दक्षिणो' गार्हपत्य' श्चा,-ऽऽहवनीय स्त्रयोऽग्नयः / इदमग्नित्रयं विश्वे, त्रेता' हि कथ्यते बुधः // 1378 // मन्त्रादिसंस्कृतोऽग्नि वै, प्रणीतो' मन्यते पुनः / / ऋग धाय्या' सामोधेनी च, समिदाधीयते यया // 1376 //