________________ सुशीलनाममालाया उपजिह्वो'-पदोका स्यात्, वम्री तयोपदेहिका // 2177 // . . रिक्षा' लिक्षा' प्रसिद्धा ऽस्ति, यूका' तु षट्पदी पुनः। ख्यात नाम महाभीरः', गोपालिकारे ऽपि नाम वै // 2178n गर्वभो' गोमयोत्था' स्यात्, मत्कुण' स्तु प्रसिद्धकः / ... उद्दशः२ किटिभ: श्चापि वै, कोलकुण स्तथोत्कुणः // 2176 // अग्निको' ऽग्निरज श्चैव, वैराट' स्तित्तिभः पुनः / इन्द्रगोप श्च नामानि, मन्यन्ते तित्तिभस्य वै // 2180 / / ख्याता कर्णजलूका' च, कर्णकोटा ऽपि कथ्यते / तथा कर्णजलौका: स्यात्, शतपदी च मन्यते // 2181 // पुनः कर्णजलौकाः५ ऽपि, कथ्यते कौविद किल। एते त्रीन्द्रियजीवा स्तु, वर्तन्ते हि महीतले // 2182 // // इति श्रीन्द्रियजीवाः समाप्ताः / / * अथ चतुरिन्द्रियजीवनामानि * * लूतानामानि (r) कर्णनाभः' क्रिमि: कृमिः, मर्कटक' स्तथा अष्टपाद / लालास्त्राव श्च लूता च, जालिको जालकारकः // 2183 // प्रख्यात स्तन्त्रवाय' श्च, तन्तुवाय'' स्तथैव च / सर्व नामानि लूतायाः, मन्यन्ते पण्डितै जनैः // 2184 //