________________ 80 सुशीलनाममालायां श्वेतं' श्वेतरस चैव. समभागजलं दधि / कटवरं' सारणं तक, मर्शोघ्नं परमरसः५ // 612 // जलं विनैव मथित , मथितं' कथ्यते दंधि / सर्पिषा संस्कृतं द्रव्यं, सापिष्क' कथ्यते जनैः // 613 // दनि यत् संस्कृतं द्रव्यं तद् दाधिक ' मुदाहृतम् / दकलावणिक' द्रव्यं, लवणोदक संस्कृतम् // 614 / / अर्द्ध पानीयवद् दध्ना, संस्कृतं वस्तु कथ्यते / प्रौदश्वित' मौदश्वित्कं , लोके सर्वत्र भोजनम् // 615 // लवणेन संस्कृत द्रव्यं, लावणं' कथ्यते बुधैः / उखायां जात मुख्य' स्यात्, पैठरं पिठरे कृतम् // 616 // सुसंस्कृतं प्रयस्त' ञ्च, पक्वान्नं चारु कथ्यते / सिद्ध' राद्ध ञ्च पक्व ञ्च, नाम पक्वस्य वस्तुनः // 617 // भृष्टं' भवति तद् वस्तु, यत् पक्वं जल मन्तरा। . अग्नौ पक्वञ्च भूतिः' स्यात्, भटिव ञ्च भरूटकन् // 618 / / शूल्यं शूलाकृतं मांसं, जानीयात मांम भक्षकः / मांसानाञ्च रसः प्रोक्तो, निष्क्वाथो' रसक' स्तथा // 616 / / प्रणीत' मुपसपन्न', सिद्धमन्नं रसादिवत् / मसृणं' चिक्कणं२ स्निग्धः, सामान्य स्निग्धवस्तुनि // 620 // पिञ्छिलं' विजिलं चापि, विजिविल' ञ्च विज्जलन् / विजिपिलं' सारयुक्त-दधिजं भोजनं भवेत् // 621 // .