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________________ तृतीयो मर्त्यविभागः 186 प्रादान' सर्वतो लोकाद्, अदानं च निषेधकम् / परित्यागो विनाश च, चतुर्विधार्थदूषणम् / / 1207 / / ॐ पराक्रमनामानि 8 शौण्डीर्य' पौरुषं शौर्य 3, विक्रम श्च पराक्रमः५ / * प्रतापनाम * यत् कोशदण्डजं तेजः, स प्रभावः' प्रतापवान् // 1208 / / धर्माद च कामा च, भित्यादे श्च पुनः खलु / अमात्यादेः परोक्षा या, सोपधा' कथ्यते बुधैः // 1206 // मन्यते ऽषडक्षीणं' वै, मन्त्रणं रहसि द्वयोः / . * मन्त्रनाम * : लोके हि कथ्यते मन्त्रो', रहस्यालोचनं किल // 1210 // ॐ एकान्तनामानि ॐ एकान्तं केवलं२ छन्नं 3, विविक्त विजनं तथा / / उपह्वरं रह श्चैव, निशलाकं८ निगद्यते // 1211 // ___* गुह्यनाम * - रहस्यं चापि गुह्य वै, गुप्तयोग्यं हि मन्यते /
SR No.004481
Book TitleSushil Nammala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaysushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandiram
Publication Year1988
Total Pages878
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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