________________ तृतीयो मर्त्य विभागः डयन ञ्चेति नामास्ति, स्कन्धे धार्यते नरैः / प्रथानः' शकटो' नाम शकटं चापि कथ्यते // 1228 // यानं वृषभसंयुक्तं, गन्त्री' कम्बलिवाह्यकम् / काम्बलाच्छादितो रथः, काम्बलः' कथ्यते पुनः // 1226 // ववादाच्छादितो वाखो', दौगूलोऽपि निगद्यते / यः पाण्डुकम्बली' स स्यात्, संवीतः पाण्डुकम्बलैः // 1230 // द्वैपो' रथ स्तु वैयाघ्रोरे, यो वृतो द्वीपिचर्मणा / * चक्रनामानि के अरि' चक्र रथाङ्ग च, रथपादो ऽपि कथ्यते // 1231 // भ्रमद् भागस्तु चक्रस्य, नेमि' र्धारा' तथा प्रधिः / प्रक्षाग्रकोले त्वण्या'-ऽऽणी, प्रोक्तो नाभि' स्तु पिण्डिका' // 1232 // स चकमध्यभागोऽस्ति. कूबरं वै युगन्धरम् / उक्त युगस्य काष्ठं तद्, युग'-मीशान्तबन्धनम् // 1233 // युगकोलक'-शम्येऽथ भवेयुगस्य कोलकः / युगान्तरं तु प्रासङ्गो, धुरो भागो निगद्यते // 1234 // प्रधः स्थितं तु यद् काष्ठ-मनुकर्षो' निगद्यते / यानमुखं च धूर्वो धूः, रथाग्रभाग उच्यते // 1235 //