________________ बारहवां शतक : उद्देशक 6] [187 बहुलपक्खस्स पाडिवए पन्नरसतिभागेणं पन्नरसतिभागं, चंदस्स लेस्सं आवरेमाणे पावरेमाणे चिट्ठति, तं जहा--पढमाए पढमं भाग, वितियाए बितियं मागं जाव पतरसेसु पारसमं भागं / चरिमसमये चंदे रत्ते भवति, अवसेसे समये चंदे रत्ते वा विरत वा भवति / तमेव सुक्कपक्खस्स उबदसेमाणे 2 चिट्ठइ-पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसेसु पनरसमं भागं चरिमसमये चंदे विरत्ते भवइ, अवसेसे समये चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ / तत्थ णं जे से पचराहू से जहन्नणं छह मासाणं; उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स, अडयालीसाए संबच्छराणं सूरस्स। [3 प्र.] भगवन् ! राहु कितने प्रकार का कहा गया है ? 3 उ.] गौतम ! राहु दो प्रकार का कहा गया है, यथा---ध्र कराहु और पर्व राहु / उनमें से जो ध्र वराहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्रबिम्ब के पन्द्रहवें भाग को बार-बार ढंकता रहता है, यथा-प्रथमा (प्रतिपदा की रात्रि) को (चन्द्रमा) के प्रथम भाग को ढंकता है, द्वितीया को (चन्द्र के) दूसरे भाग को ढंकता है, इसी प्रकार यावत् अमावस्या को (चन्द्रमा के) पन्द्रहवें भाग को हँकता है। कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आवृत) हो जाता है, और शेष (अन्य) समय में चन्द्रमा रक्त (अंशतः आच्छादित) और विरक्त (अंशतः अनाच्छादित) रहता है। इसी कारण शुक्लपक्ष का (प्रथम दिन) प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा (पन्द्रहवें दिन) तक प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, (अर्थात् प्रतिपदा से प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग खुला होता जाता है, यावत् पूर्णिमा तक पन्द्रहवाँ भाग खुला हो जाता है।) शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णत: अनाच्छादित हो जाता है, और शेष समय में वह (चन्द्रमा) रक्त (अंशतः अनाच्छादित) और विरक्त (अंशतः अनाच्छादित) रहता है। इनमें से जो पर्व राहु है, वह जघन्यत: छह मास में चन्द्र और सूर्य को प्रावृत करता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढंकता है। विवेचन नित्यराहु और पर्वराह : स्वरूप और कार्यकलाप -राहु दो प्रकार का हैध्र वराहु और पर्वराहु / काला राहु-विमान जो चन्द्रमा से चार अंगुल ठीक नीचे सन्निहित होकर नित्य संचरण करता है, वह ध्र वराहु है / चन्द्रमा की 16 कलाएँ (अंश) हैं, जिन्हें 16 भाग कहते हैं / कृष्णपक्ष में राहु प्रतिपदा (पहली तिथि) से लेकर पन्द्रह भागों में से चन्द्रबिम्ब के एक-एक भाग को प्रतिदिन पाच्छादित करता जाता है। पन्द्रहवे अर्थात् अमावस्या के दिन वह चन्द्रमा के पन्द्रह भागों को आवृत कर देता है / पन्द्रह भाग से युक्त कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा राहु से सर्वथा अनाच्छादित (उपरक्त) हो जाता है और शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पूणिमा तक एक-एक भाग को अनाच्छादित (खला) करता जाता है। अर्थात--शक्लपक्ष में प्रतिपदा से पणिमा तक एक भाग आच्छादित और एक भाग अनाच्छादित रहता है। अन्तिम (पूर्णिमा के) दिन चन्द्रमा सर्वथा अनाच्छादित होने से शुक्ल हो जाता है / पूर्णमासी या अमावस्या के (पर्व) में सूर्य या चन्द्रमा को जब राहु आवृत करता है, उसे पर्वराहु कहते हैं / पर्वराहु जघन्य 6 मास में चन्द्रमा और सूर्य को श्रावृत करता है, और उत्कृष्ट 42 मास में चन्द्रमा को और 48 वर्ष में सूर्य को आवृत करता है। यही चन्द्रग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org