________________ चौधोमवां शतक : उष्ट्शक ] [177 8. सो चेव उक्कोसकालद्वितीएसु उपधन्नो, तस्स बि एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती जहन्नेणं देसूणाई दो पलिप्रोवमाई, उक्कोसेणं तिनि पलिश्रोवमाई। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति / कालादेसेणं जहन्नेणं देसूणाई चत्तारि पलिनोवमाई, उक्कोसेणं देसूणाई पंच पलिग्रोवमाई, एवतियं कालं० / [तइओ गमओ]। [=] यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए भी यही वक्तव्यता कहनी चाहिए / विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य देशोन दो पल्योपम की और उत्कृष्ट तीन पत्योपम की होती है / शेष सब पूर्ववत् यावत् भवादेश तक / काल की अपेक्षा से जघन्य देशोन चार पल्योपम और उत्कृष्ट देशोन पांच पल्योपम, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है / [सू. 8, तृतीय गमक] ___E. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु जहेब असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स जहन्नकालाद्वतीयस्स तहेव निरवसेसं / [4-~6 गमगा] / [6] यदि वह स्वयं जघन्य काल को स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो तो उसके भी तीनों गमकों में असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले जघन्य काल की स्थिति के पसंख्यातवर्षायुष्क संज्ञी तिर्यञ्च के तीनों गमकों के समान समग्र कथन जानना जाहिए। [सू. 6, 4-5-6 गमक] 10. सो चेव अप्पणा उक्कोसकाल द्वितीयो जानो, तस्स वि तहेव तिनि गमका जहा असुरफुमारेसु उववज्जमाणस्स, नवरं नागकुमारट्टिति संवेहं च जाणेज्जा। सेसं तं चेव जहा असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स / [7-- गमगा] / [10] यदि वह स्वयं उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नागकुमारों में उत्पन्न हुआ हो, तो उसके भी तीनों गमक, असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चयोनिक के तीनों गमकों के समान कहने चाहिए / विशेष यह है कि यहाँ नागकुमार की स्थिति और संवेध जानना चाहिए / शेष सब वर्णन असुरकुमारों में उत्पन्न होने वाले तिर्यञ्चयोनिक के समान जानना चाहिए। [सू. 10, 7-8-6 गमक] विवेचम-मागकुमारों की उत्पत्तिविषयक स्पष्टीकरण-(१) 'उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पन्न होता है'; यह कथन उत्तरदिशा के नागकुमारनिकाय की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि उन्हीं में देशोन दो पल्योपम की उत्कृष्ट प्रायु होती है / (2) उत्कृष्ट संवेधपद में जो देशोन पांच पल्योपम कहे गए हैं, वे असंख्यात वर्ष की प्रायु वाले तिर्यञ्च सम्बन्धी सीन पल्योपम और नागकुमार सम्बन्धी देशान दो पल्योपम, इस प्रकार देशोन पांच पल्योपम समझना चाहिए। (3) दूसरे गमक में नागकुमारों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की बताई है। संवेधकाल की अपेक्षा से-जघन्य सातिरेक पूर्वकोटि सहित दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तीन पल्योपम सहित दस हजार वर्ष समझना चाहिए। (4) तीसरे गमक में देशोन दो पल्योपम की स्थिति वालों में उत्पत्ति समझनी चाहिए / जघन्य देशोन दो पल्योपम की जो स्थिति कही है, वह अवसर्पिणीकाल के सुषमा नामक दूसरे आरे का कुछ भाग बीत जाने पर असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यञ्चों की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org