________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक 7) [497 212. से कि तं इंदियपडिसंलोणया ? इंदियपडिसंलोणया पंचबिहा पन्नत्ता, तंजहा-सोइंदिय विसयपयारणिरोहो वा, सोति दियविसयपत्तेसु वा प्रत्येसु राग-दोस विणिग्गहो; चक्खि दियविसय०, एवं जाब फासिदिय विसयपयारणिरोहो वा, फासिदियविसयप्यत्तेसु वा अत्थेसु राग-द्दोस विणिग्गहो / से तं इंदियपडिसंलोणया। [212 प्र. भगवन् ! इन्द्रियप्रतिसलीनता कितने प्रकार की है ? [212 उ. गौतम ! इन्द्रियप्रतिसंलीनता पांच प्रकार की कही है। यथा--(१) श्रोत्रेन्द्रियविषय-प्रचारनिरोध अथवा श्रोत्रेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषविनिग्रह, (2) चक्षुरिन्द्रियविषयप्रचारनिरोध अथवा चक्षरिन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वेषविनिग्रह, इसी प्रकार यावत् स्पर्शनेन्द्रियविपयप्रचारनिरोध अथवा स्पर्शनेन्द्रियविषयप्राप्त अर्थों में रागद्वषविनिग्रह / यह इन्द्रियप्रतिसंलोनता-तप का वर्णन हया। 213. से कि तं कसायपडिसलीणया? कसायपडिसंलोणया चउम्विहा पन्नत्ता, तंजहा–कोहोदयनिरोहो बा, उदयप्पत्तस्स वा कोहस्स विफलीकरणं; एवं जाव लोभोदयनिरोहो वा उदयपत्तस्स वा लोभस्स विफलीकरणं / से तं कसायपडिसंलोणया। [213 प्र.] भगवन् ! कषायप्रतिसंलीनता कितने प्रकार की है ? 1213 उ. गौतम ! कपायप्रतिसंलीनता चार प्रकार की कही है। यथा--(१) क्रोधोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त क्रोध का विफलीकरण, यावत् (4) लोभोदयनिरोध अथवा उदयप्राप्त लोभ का विफलीकरण / यह हुआ कषायप्रतिसंलीनता का वर्णन / 214. से कि तं जोगडिसंलोणया? जोगपडिसंलोणया तिविहा पन्नता, तं जहा.-अकुसलमणनिरोहो वा, कुसलमणउदीरणं वा, मणस्स वा एमत्तीभावकरणं; प्रकुसलवइनिरोहो वा, कुसलवइ उदीरणं वा, वईए वा एगत्तीभावकरणं / [214 प्र.] भगवन् ! योगप्रतिसलीनता कितने प्रकार की है ? [214 उ.] गौतम ! योगप्रतिसलीनता तीन प्रकार की कही है। यथा--(१) मनोयोगप्रतिसंलीनता, (2) वचनयोगप्रतिसंलीनता और (3) काययोगप्रतिसलीनता / [प्र.) मनोयोगप्रतिसंलीनता किस प्रकार की है ? [उ.] मनोयोगप्रतिसंलीनता इस प्रकार की है-अकुशल मन का निरोध, कुशलमन की उदी. रणा और मन को एकाग्र करना। 1. अन्य प्रतियों में अधिक पाठ उपलब्ध होता है --- मणजोगडिसलोणया वइजोगपडिसंलीणथा कायजोगपडि संलोणया य / से कि सं मणजोगडिसलीणया ? मणजोगपडिसंलोणया--अकुसलमणनिरोहो वा, कुसलमणउदीरणं वा, मणरस वा एगत्तीभावकरणं / से त मणजोगपडिसलीगया। से कितं वइजोगपरिसलीगया? यइजोगपडिसलीणया / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org