________________ नवमाइ-बारसम-पज्जंता उद्देसगा नौवें से बारहवे उद्देशक तक भव्यनरयिकों के समान अभव्यनयिकों सम्बन्धी वक्तव्यता 1. जहा भवसिद्धोएहि चत्तारि उद्देसगा भणिया एवं अभवसिद्धीएहि वि चत्तारि उद्देसगा भाणियब्वा जाव काउलेस्सउद्देसओ ति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। // इक्कतीसइमे सए : नवमाइ-बारसम-पज्जता उद्देसगा समत्ता / / [1] जिस प्रकार भवसिद्धिक-सम्बन्धी चार उद्देशक कहे, उसी प्रकार प्रभवसिद्धिक-सम्बन्धी चारों उद्देशक यावत् कापोतलेश्या-सम्बन्धी उद्देशकों तक कहने चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। ॥इकतीसयां शतक : नौवें से बारहमें उद्देशक तक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org