________________ एगणयालीसइमं सयं : बारस असन्निपंचिंदियमहाजुम्मसयाई उनचालीसवां शतक : द्वादश असंज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक द्वीन्द्रिय-महायुग्म-शतकानुसार द्वादश प्रसंज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मशतक-निरूपरण 1. कडजुम्मकडजुम्मप्रसन्निपंचेंदिया पं भंते ! कसो उववज्जति ? जहा बेंदियाणं तहेव प्रसन्नीसु वि बारस सया कायवा, नवरं ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेन्जहभाग, उक्कोसेणं जोयणसहस्स; संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुवकोडीपुहत्तं; ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुन्चकोडी / सेसं बहा दियाणं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥असणिपंचेंदियमहाजुम्मसया समता // 36-1-12 // ॥एगणयालीसइमं सयं समत्तं // 36 // [1 प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिप्रमाण असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! द्वीन्द्रियशतक के समान असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक करने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है तथा कायस्थिति (संचिट्ठणा) जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व की है एवं भवस्थिति (स्थिति) जघन्य एकसमय की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। शेष पूर्ववत् द्वीन्द्रिय जीवों के समान है / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन-द्वीन्द्रियशतक के समान-अवगाहना, कास्थिति और भवस्थिति के सिवाय असंज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्म के 12 शतकों का शेष समग्र कथन द्वीन्द्रियशतक के समान प्रस्तुत शतक में बताया गया है। // उनचालीसवां शतक : द्वादश प्रसंज्ञोपंचेन्द्रियमहायुग्मशतक सम्पूर्ण // // उनचालीसवां शतक समाप्त // 36 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org