________________ अठतीसइमं सयं : बारस चउरिदियमहाजुम्मसयाई अड़तीसवां शतक : द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक द्वीन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक-निरूपण 1. चरिदिएहि वि एवं चेव बारस सया कायन्वा, नवरं प्रोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभाग, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं; ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा / सेसं जहादियाणं / सेवं भंते ! से भंते ! ति। // अद्वतीसइमे सए : बारस चारिदियमहाजुम्मसया समत्ता // 38 // 1-12 / / ॥अद्वतीसहमं सयं समत्तं / / 38 // [1] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों के बारह शतक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट चार गाऊ की है तथा स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट छह महीने की है। शेष सब कथन द्वीन्द्रिय जीवों के शतक के समान है। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन द्वीन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार वक्तव्यता-इन बारह चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतकों की समग्न वक्तव्यता भी अवगाहना और स्थिति के अतिरिक्त द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक के अनुसार बताई / / अड़तीसवां शतक : द्वादश चतुरिन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त // // अड़तीसवां शतक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org