________________ इकतालीसवां शतक : उद्देशक 57-64] [759 [7] पद्मलेश्यी प्रभवसिद्धिक-सम्बन्धी भी चार उद्देशक होते हैं / / 4177-80 / / 8. सुक्कलेस्सप्रभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्दे सगा।॥ 4181-84 / / [=] शुक्ललेश्यायुक्त अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक होते हैं / / 41181-84 / / 6. एवं एएसु अट्ठावीसाए (57.84 ) वि प्रभवसिद्धियउद्दसएसु मणुस्सा नेरइयगमेणं नेतवा। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति। ॥इकचत्तालीसइमे सए : सत्तावण्णइमाइचुलसीइमपज्जंता उद्देसगा समता / / 42157-84 / / [9] इस प्रकार इन अट्ठाईस (57 से 84 तक) अभवसिद्धिक उद्देशकों में मनुष्यों-सम्बन्धी कथन नैरपिकों के पालापक के समान जानना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतालीसौं शतक : सत्तावन से चौरासी उद्देशक पर्यन्त सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org