Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 2976
________________ 778] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जोतिसियउद्देस (य) (जीवाभिगमसूत्र का ज्योति- बहुवत्तव्यता (व्वया) प्रज्ञापना सूत्र का तीसरा कोद्देशक) 3 / 6 / 1, 105 / 27 पद) दा२।१५५, 25 / 3 / 117, 118, 120, ठाणपद (य) (प्रज्ञापनासूत्र का दूसरा पद) 2 / 7 / 2, / 121, 25 / 4 / 17 / 1510168, 17 / 5 / 1 बंधुद्देसय (प्रज्ञापनासूत्र का चौवीसवाँ पद) 6 / 9 / 1, ठितिपद (प्रज्ञापना सूत्र का चौथा पद) 111111 बंभण्णय (शास्त्र) 211112 18, 24 / 2065 बंभी (लिपि) 1111 दसा (जैन आगम) 102 / 6 भावणा (प्राचारांगसूत्र के द्वितीय श्रृतस्कंध के दिट्टिवाय (जैन आगम) 16 / 6 / 21, 2018 / 6, पन्द्रह अध्ययन 1500 / 21 15, 25 / 3 / 115 भासापद (प्रज्ञापनासूत्र का ग्यारहवाँ पद) 2 / 611, 252 / 17 दुस्समाउद्देसय (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के सातवें शतक यजुवेद (वेद ग्रन्थ) 11112 / 16 छठा उद्देशक) 89101 रायप्प सेणइज्ज (जैन आगम) 3 / 1133, 3 / 6 / 14, नंदो (जैन आगम-नंदीसूत्र) 8 / 2 / 27, 146, 8 / 2 / 23 (2), 9 / 33 / 49, 55; 10 / 6 / 1, 25 / 3 / 116 निघंटु (शास्त्र) 211112 11 / 11 / 48, 50, 13 / 4 / 66(2), 131616, नियंठ्ठद्देसय (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के दूसरे शतक 18 / 2 / 3, 48 / 10 / 28 / ___ का पांचवां उद्देशक) 7 / 10 / 5, 6 (2) रिउव्वेद (रिजुब्वेद)(रिब्वेद) (वेदग्रन्थ) 2 / 1 / 12, 9 / 33 / 2, 11 / 12 / 16, 1510 / 16, 36; निरुत्त (शास्त्र) 2 / 1112 18 / 10 / 15 नेरइयउद्देशय (प्रज्ञापनासूत्र के अट्ठाईसवें पद का लेसुद्देसय (प्रज्ञापनासूत्र के सत्रह पद का चौथा है पहला उद्देशक 13 / 5 / 1 उद्देशक) 19 / 2 / 3 नेरइयउद्देसय (जीवाभिगम सूत्र का उद्देशक) लेस्सापद (प्रज्ञापना सूत्र का सत्रहवां पद) 4 / 6 / 1, 12 / 3 / 3, 13 / 4 / 10, 14 / 3 / 17 4 / 1011 पण्णवणा (जैन ग्रागम) 112 (5), 4 / 9 / 1,4 वक्कंति (पद) (प्रज्ञापनासूत्र का छठा पद) 110 // 1011, 6 / 2 / 1, 661,7 / 2 / 28, 8 / 1148, 3, 11 / 115, 44; 12 / 6 / 7, 11, 25; 22 / वर्ग 4 / 1, 22 / वर्ग 5 / 1, 25 / 2 / 12, 16 / 3 / 43, 21 / 1 / 3, 24 / 12 / 1 (2), 2514180, 2551 वागरण (शास्त्र) 211.12 पन्नवणा (जैन आगम-प्रज्ञापनासूत्र) 131811, वेद (वेदग्रन्थ) 2 / 1 / 12, 8 / 2 / 27 13 / 10 / 1, 16 // 314, 16 // 13, 19 / 2 / 1, वेदणापद (प्रज्ञापनासत्र का पच्चीसवाँ पद) 10 / 16 / 3 / 8, 16; 16057,201116,20 / 4 / 1, पयोगपय (प्रज्ञापनासूत्र का सोलहवाँ पद)८७।२५, वेमाणियुद्देसे (जीवाभिगमसूत्र का उद्देशक)२।७।२ 15 / 0 / 63 सट्टितंत (शास्त्र) 2 / 1 / 12 परिणामपद (प्रज्ञापनासूत्र का तेरहवाँ पद) 14 / समुग्घायपद(प्रज्ञापनासूत्र का छत्तीसवाँ पद) 212 / 1 4 / 10 संखाण (शास्त्र) 2 / 1 / 12 परियारणापद (प्रज्ञापनासूत्र का चौंतीसवाँ पद) सामवेद (वेद ग्रन्थ)२।१।१२, 9 / 3312 13 / 3 / 1 सिक्खा (शास्त्र) 2 / 1 / 12 पासणयापय (प्रज्ञापनासूत्र का तीसवाँ पद) 16 / / सुविणसत्थ (शास्त्र) 11111133 (2), 34 सूयगड (सूत्रकृतांगसूत्र-जैन आगम) 166 / 21 7/1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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