________________ 768] {भ्याल्याप्रज्ञप्तिसून बारह-बारह अवान्तर शतक हैं। इस प्रकार ये कल 1247 = 84 शतक हुए। चालीसवें शतक में 21 अवान्तर शतक हैं / इकतालीसवें शतक में अवान्तर-शतक नहीं है। इन सभी शतकों को मिलाने से सभी 32+84+21+1 - 138 शतक होते हैं। समग्र भगवतीसूत्र में पदों की संख्या 84 लाख बताई है। इस सम्बन्ध में वृत्तिकार का मन्तव्य यह है कि पदों की गणना किस प्रकार से की गई है. इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता / पदों की यह गणना विशिष्ट-सम्प्रदाय-परम्परागम्य प्रतीत होती है। (2) संघ का जयवाद-इसके पश्चात् दुसरी गाथा (सूत्र 3) में संघ को समुद्र को उपमा देकर उसका जयवाद किया गया है / (3) लिपिकार द्वारा नमस्कारमंगल-इसके पश्चात् लिपिकार द्वारा गौतमगणरादि, भगवतीसूत्र एवं द्वादशांग गणिपिटक को नमस्कारमंगल किया गया है / (4) व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र को उद्देशविधि तदनन्तर व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र की उद्देश-(वाचना) विधि का संक्षेप से निरूपण है / (5) श्रुतदेवी की स्तुति और प्रार्थना-फिर अन्तिम तोन गाथाओं द्वारा श्रुतदेवो (जिनवाणी) आदि देवियों को नमस्कारपूर्वक स्तुति करते हुए ग्रन्थ को निर्विघ्न ममाप्ति को उनसे प्रार्थना की गई है।' // भगवती व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सम्पूर्ण। 1. (क) वियाहपण्णत्तिमुत्तं (मूलपाठटिप्पण) भा. 2, पृ. 11-3-25 (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 979-980 (ग) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 7, प, 3805 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org