________________ 766] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ के पाठ शतकों के दो-दो उद्देशकों का उद्देश (उपदेश या वाचना) एक-एक दिन में दिया जाता है, किन्तु चतुर्थ शतक के आठ उद्देशकों का उद्देश पहले दिन किया जाता है, जबकि दूसरे दिन दो उद्देशों का किया जाता है / (1-8) नवमायो सयाओ आरद्धं जावतियं ठाइ तावइयं उद्दिसिज्जइ, उक्कोसेणं सयं पि एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ, मज्झिमेणं दोहि दिवसेहि सयं, जहन्नेणं तिहिं दिवसेहि सतं / एवं जाय वोसइमं सतं / णवरं गोसालो एगदिवसेणं उद्दिसिज्जइ; जति ठियो एगेण चेव आयंबिलेणं अणुण्णब्वइ, ग्रहण ठियो आयंबिलछठेणं अणुण्णव्वति [9-20] / नौवें शतक से लेकर भागे यावत् बीसवें शतक तक जितना-जितना शिष्य की बुद्धि में स्थिर हो सके, उतना-उतना एक दिन में उपदिष्ट किया जाता है / उत्कृष्टतः एक दिन में एक शतक का भी उद्देश (बाचन) दिया जा सकता है, मध्यम दो दिन में और जघन्य तीन दिन में एक शतक का पाठ दिया जा सकता है / किन्तु ऐसा बीसवें शतक तक किया जा सकता है / विशेष यह है कि इनमें से पन्द्रहवें गोशालकशतक का एक ही दिन में वाचन करना चाहिए। यदि शेष रह जाए तो दूसरे दिन आयंबिल करके वाचन करना चाहिए। फिर भी शेष रह जाए तो तीसरे दिन प्रायम्बिल का छ? (बेला) करके वाचन करना चाहिए / [6-20] एक्कवीस-बावीस-तेवीसतिमाई सयाई एक्केक्कदिवसेणं उद्दिसिज्जति [21-23] / इक्कीसवें, बाईसवें और तेईसवें शतक का एक-एक दिन में उद्देश करना चाहिए [21-23] / चवीसतिमं चहि दिवसेहि-छ छ उद्देसगा [24] / चौबीसवें शतक के छल्-छह उद्देशकों का प्रतिदिन पाठ करके चार दिनों में पूर्ण करता चाहिए [24] / पंचवीसतिमं दोहि दिवसेहि छ छ उद्देसगा [25] / पच्चीसवें शतक के प्रतिदिन छह-छह उद्देशक बांच कर दो दिनों में पूर्ण करना चाहिए [25] / पमियाणं आदिमाई सत्त सयाई एक्केक्कदिवसेण उद्दिसिज्जति [26-32] / ' एगिदियसताई बारस एगेण दिवसेण [33] / सेढिसयाई बारस एयेगं० [34] / एगिदियमहाजुम्मसताई बारस एगेणं० [35] / एक समान पाठ वाले बन्धीशतक आदि सात (26 से ३२वें) शतक (आठ शतक--२६ से 33 तक) का पाठवाचन एक दिन में, बारह एकेन्द्रियशतकों का वाचन एक दिन में (33), बारह श्रेणीशतकों का वाचन एक दिन में (34) तथा एकेन्द्रिय के बारह महायुग्मशतकों का बाचन एक ही दिन में करना चाहिए / [35] - - ----- -- - --- - - - ------ - 1. पाठान्तर-'बंधिसयाई अद्रसपाइं एगेणं दिवमेणं... / ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org