________________ सत्तावण्णइमाइचुलसीइमपज्जंता उद्देसगा सत्तावनवे से लेकर चौरासीबें उद्देशक पर्यन्त प्रथम अट्ठाईस उद्देशकों के अनुसार अभवसिद्धिकसम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक-निरूपण 1. अभवसिद्धियरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! को उववज्जति ? जहा पढमो उद्देसगो, नवरं मणुस्सा नेरइया य सरिसा भाणियव्वा / सेसं तहेव / सेवं भंते ! सेवं भले ! ति० / [1 प्र.} भगवन् ! अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [1 उ.] गौतम ! प्रथम उद्देशक के समान इस उद्देशक का कथन करना चाहिए / विशेष यह है कि मनुष्यों और नैरयिकों की वक्तव्यता समान जाननी चाहिए। शेष पूर्ववत् / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / 2. एवं चउसु वि जुम्मेसु चत्तारि उद्दे सगा / / 41157-60 // [2] इसी प्रकार चार युग्मों (कृतयुग्म से कल्योज तक) के चार उद्देशक कहने चाहिए // 41157-60 // 3. काहलेस्सप्रभवसिद्धियरासोजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! को उववज्जंति ? एवं चेव चत्तारि उद्देसगा // 41 / 61-64 // [3 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी-अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [3 उ.] इनके भी पूर्ववत् चार उद्देशक कहने चाहिए // 41161-64 / / 4. एवं नीललेस्सअभवसिद्धिएहि वि चत्तारि उद्दे सगा।॥ 41165-68 // [4] इसी प्रकार नीललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानने चाहिए // 41 // 65-68 // 5. एवं काउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा // 41 // 69-72 // [5] इसी प्रकार कापोतलेश्यायुक्त प्रभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक होते हैं // 41466-72 / / 6. एवं तेउलेस्सेहि वि चत्तारि उद्देसगा।। 41173-76 // [6] तेजोलेश्यी अभवसिद्धिक जीवों के भी इसी प्रकार चार उद्देशक कहने चाहिए / / 4173-76 // 7. पम्हलेसेहि वि चत्तारि उद्दे सगा // 4177-80 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org