________________ तेरसुत्तरसयतमाइचत्तालीसुत्तरसयतमपज्जंता उद्देसगा एकसौ तेरह से एकसौ चालीस उद्देशक पर्यन्त मिथ्यादृष्टि को अपेक्षा अट्ठाईस उद्देशकों का निर्देश 1. मिच्छदिदिरासीजुम्मकडजम्मनेरइया णं भंते ! को उबवज्जति ? एवं एस्थ वि मिच्छादिष्टुिअभिलावेणं अभवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसका कायन्वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // इकचतालीसइमे सए : तेरसुत्तरसयतमाइचत्तालोसुत्तरसयतमपज्जता उद्देसगा समत्ता // // 41 / 113-140 // [1 प्र.] भगवन् ! मिथ्यादष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [1 उ.] मिथ्यादृष्टि के अभिलाप से यहाँ भी अभवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए / / 41 / 113-140 / / ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतालीसवां शतक : एकसौ तेरह से एकसौ चालीस उद्देशक पर्यन्त समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org