Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 2958
________________ पंचासीइमाइबारसुत्तरसयतमपज्जंता उद्देसगा पचासीवें से एकसौ बारहवें उद्देशक पर्यन्त सम्यग्दृष्टिसम्बन्धी पूर्वोक्तानुसार अट्ठाईस उद्देशक 1. सम्महि द्विरासीजुम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कसो उववज्जति ? . एवं जहा पढमो उद्देसओ। [1 प्र.] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नै रयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] प्रथम उद्देशक के समान यह उद्देशक जानना चाहिए। 2. एधं चउसु बि जुम्मेसु चत्तारि उद्देसगा भवसिद्धियसरिसा कायन्वा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 41185-88 // [2] इसी प्रकार चारों युग्मों में भवसिद्धिक के समान चार उद्देशक कहने चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / / 41185-88 / / 3. कण्हलेस्ससम्मद्दिट्टिरासीजम्मकडजुम्मनेरइया णं भंते ! कओ उववज्जति ? एए वि कण्हलेस्ससरिसा चत्तारि उद्देसगा कातवा // 41186-62 // [3 प्र.] भगवन् ! कृष्णले श्यी सम्यग्दृष्टि राशियुग्म-कृतयुग्मराशि नैरयिक कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [3 उ.] यहाँ भी कृष्णलेश्या-सम्बन्धी (चार उद्देशकों) के समान चार उद्देशक कहने चाहिए // 4186-62 // 4. एवं सम्मट्ठिीसु वि भवसिद्धियसरिसा अट्ठावीसं उद्देसगा कायन्वा // 41163-112 // सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ / // इकचत्तालीसइमे सए : पंचासीइमाइबारसुत्तरसयतमपज्जंता उद्देसगा समत्ता // 41185-112 // [4] इस प्रकार (नीललेश्यादि पंचविध) सम्यग्दृष्टि जीवों के भी भवसिद्धिक जीवों के समान (प्रत्येक लेश्या सम्बन्धी चार-चार उद्देशक होने से इनके 20 उद्देशक मिलने से कुल) अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए / / 41 / 93-112 // 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन--सम्यग्दृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मादि नैरयिक के 28 उद्देशक-ये 28 उद्देशक इस प्रकार हैं- (1) सम्यग्दृष्टि राशियुरम में कृतयुग्म आदि चारों युग्मों के चार उद्देशक, (2) कृष्णलेश्यायुक्त सम्यग्दृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मादि चारों युग्मों के चार उद्देशक तथा (3) शेष नीललेश्यादि पांच लेश्याओं से युक्त राशियुग्म-कृतयुग्मादि चतुष्टयरूप सम्यग्दृष्टि जीवों के 544 = 20 उद्देशक, यों कुल 4+4+20 = 28 उद्देशक होते हैं / // इकतालीसवां शतक : पच्चासी से एकसौ बारह उद्देशक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 2956 2957 2958 2959 2960 2961 2962 2963 2964 2965 2966 2967 2968 2969 2970 2971 2972 2973 2974 2975 2976 2977 2978 2979 2980 2981 2982 2983 2984 2985 2986