________________ सत्तमे सन्निपंचिदियमहाजम्मसए : एक्कारस उद्देसगा सप्तम संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुम्मशतक : ग्यारह उद्देशक 1. सुक्कलेस्ससयं जहा ओहिय सयं, नवरं संचिटणा ठिती य जहा कण्हलेस्ससते / सेसं तहेव जाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते ! सेव भंते ! त्ति० // 401711-11 // // चत्तालीसइमे सए : सत्तमं सयं समत्तं // 40-7 // . [श शुक्ललेश्याशतक भी पौधिक शतक के समान है। इनका संचिटणाकाल और स्थिति कृष्णलेश्याशतक के समान है। शेष पूर्ववत्, यावत् पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, इत्यादि पूर्ववत् / विवेचन-शुक्ललेश्यी की स्थिति पूर्वभव के अन्तिम अन्तर्मुहर्त-सहित अनुत्तरदेवों की उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की स्थिति की अपेक्षा समझनी चाहिए। // चालीसवां शतक : सातवाँ अवान्तरशतक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org