________________ [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [5] जति अकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेंति ? हंता, सिझंति जाव अंतं करेंति / [10-5 प्र.) भगवन् ! यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? [10-5 उ.] हाँ, गौतम ! वे उसी भव में सिद्ध यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं। [6] अदि सलेस्सा कि सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो अकिरिया / [10-6 प्र.] भगवन् ! यदि वे (तथाकथिक मनुष्य) सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? [10-6 उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं। [7] अदि सकिरिया तेणेव भवग्गहणेणं सिझति जाव अंतं करेंति ? गोयमा ! प्रत्येगइया तेणेव भवगहणणं सिझति जाव अंतं करेंति, अत्यंगइया नो तेणेव भवग्गहणणं सिझंति जाव अंतं करेंति / [10-7 प्र.] भगवन् ! वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? [10-7 उ.] गौतम ! कितने ही (मनुष्य) इसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं और कितने ही (मानव) उसी भव में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त नहीं होते, यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर पाते। [+] अति प्रायजसं उत्रजीवंति कि सलेस्सा, अलेस्सा ? गोयमा ! सलेस्सा, नो अलेस्सा। [10-8 प्र.] भगवन् ! यदि वे प्रात्म-अयश से जीवन चलाते हैं तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? [10-8 उ.] गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं, अलेश्यी नहीं। [6] अदि सलेस्सा कि सकिरिया, अकिरिया ? गोयमा ! सकिरिया, नो प्रकिरिया / [10-9 प्र.] भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? [10-9 उ.] गौतम ! वे सक्रिय होते हैं, अक्रिय नहीं। [10] जदि सकिरिया तेणेव भवागहणणं सिझति जाव अंतं करेंति ? नो इणढे समठे। [10-10 प्र.] भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ? {10-10 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org