________________ बिइओ उद्देसओ : द्वितीय उद्देशक राशियुग्म-योजराशिवाले चौबीस दण्डकों में उपपातादि-वक्तव्यता 1. रासीजुम्मतयोयनेरयिया णं भंते ! को उववज्जति ? एवं चेव उद्देसनो भाणियम्वो, नवरं परिमाणं तिन्नि बा, सत्त बा, एक्कारस वा, पन्नरस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा उववज्जंति / संतरं तहेव / [1 प्र.] भगवन् ! राशियुग्म-ज्योजराशि-परिमित नै रयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! पूर्ववत् इस उद्देशक का कथन करना चाहिए। इनका परिमाण--ये तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं / सान्तर पूर्ववत् / 2. [1] ते णं भंते ! जीवा जं समयं तेयोया तं समयं कडजुम्मा जं समयं कडजुम्मा तं समयं तेयोया? णो इणठे समठे। [2-1 प्र.] भगवन् ! वे जीव जिस समय ज्योजराशि होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं, तथा जिस समय कृतयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय त्र्योजराशि होते हैं ? [2-1 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। [2] जं समयं तेयोया तं समयं दावरजुम्मा, जं समयं दावरजुम्मा तं समयं तेयोया ? णो इणढ़े समठे। [2-2 प्र.] भगवन् ! जिस समय वे जीव त्र्योजराशि होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मराशि होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय वे ज्योजराशि होते हैं ? [2-2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है / [3] एवं कलियोगेण वि समं / [2-3] कल्योजराशि के साथ कृतयुग्मादिराशि-सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। 3. सेसं तं चेव जाव वेमाणिया, नवरं उववातो सव्वेसि जहा वक्कंतीए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // इकचत्तालीसइमे सए : विइग्रो उद्देसनो समस्तो / / 41 / 1 / 2 // [3] शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् वैमानिक दण्डक-पर्यन्त जानना चाहिए किन्तु सभी का उपपात प्रज्ञापनासूत्र के छठे व्युत्कान्तिपद के अनुसार समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org