________________ इकतालीसवां शतक : उद्देशक 5-8] [753 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। 6. कण्हलेस्सकलिओएहि वि एवं चेव उद्देसमो। परिमाणं संवेहो य जहा प्रोहिए उद्देसएसु। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 41-8 // // इकचत्तालोसइमे सए : पंचमाइ अट्ठम-उद्देसगपज्जंता उद्देसगा समत्ता // 41 / 5.8 // [6] कृष्णलेश्या वाले कल्योजराशि नैरयिक का उद्देशक भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना / किन्तु इनका परिमाण और संवेध प्रौधिक उद्देशक के अनुसार समझना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / विवेचन-प्रस्तुत पंचम उद्देशक से अष्टम उद्देशक पर्यन्त कृष्णलेश्यी राशियुग्म वाले कृतयुग्म, व्योज, द्वापरयुग्म और कल्योजराशिरूप जीवों के उपपात आदि का कथन प्रथमोद्देशक के अतिदेशपूर्वक किया गया है। // इकतालीसवां शतक : पंचम से अष्टम उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org