________________ नवमे एगिदियसए : पढमाइ-नवम-पज्जंता उद्देसगा नौवा एकेद्रियशतक : पहले से नौवें उद्देशक तक / पंचम एकेन्द्रियशतक के नौ उद्देशकानुसार : प्रभवसिद्धिक एकेन्द्रिय-वक्तव्यता-निर्देश 1. कतिविधा गं भंते ! प्रभवसिद्धीया एगिदिया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंचविहा अभवसिखोया पन्नत्ता, तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सतिकापिया। [1 प्र.] भगवन् ! प्रभवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [1 उ.] गौतम ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय पांच प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पृथ्वीकायिक (से लेकर) यावत् वनस्पतिकायिक / 2. एवं जहेव भवसिद्धीयसयं, नवरं नव उद्देसगा, चरिम-प्रचरिमउद्देसकवज्जं / सेसं तहेव / // नवमे एगिदियसए : पढमाइ-नवम-पज्जंता उद्देसगा समत्ता // 6 // 1-11 // ॥तेतीसइमे सए : नवमं एगिदियसयं समत्तं / / 33-6 // [2] जिस प्रकार भवसिद्धिकशतक कहा, उसी प्रकार अभवसिद्धिकशतक भी कहना चाहिए; किन्तु 'चरम' पोर 'प्रचरम' इन दो उद्देशकों को छोड़ कर (इनके) शेष नौ उद्देशक कहने चाहिए। शेष सब पूर्ववत् है / / // मवम एकेन्द्रियशतक : पहले से मौवें उद्देशक-पर्यन्त समाप्त // ॥तेतीसवां शतक : मौवाँ एकेन्द्रियशतक सम्पूर्ण / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org