________________ छठे एगिदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपज्जंता उद्देसगा छठा एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त द्वितीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतकानुसार छठे एकेन्द्रियमहायुग्मशतक का कथननिर्देश 1. कण्हलेस्सभवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कसो उववज्जति ? एवं कण्हलेस्सभवसिद्धियएगिदिएहि वि सयं बितियसयकण्हलेस्ससरिसं भाणियव्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 35-6 / 1-11 // // पंचतीसइमे सए : छठें एगिदियमहाजुम्मसयं समतं // 35-6 // [1 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [1 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों से सम्बन्धित समग्र शतक का कथन कृष्णलेश्या-सम्बन्धी द्वितीय शतक के समान करना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार हैं, यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं / / 351661-11 // // छठा एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक सम्पूर्ण // // पैतीसवां शतक : छठा एकेन्द्रियमहायुग्मशतक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org