________________ 712] [व्याख्याप्रशप्तिसूत्र छह दिशा का आहार लेते हैं। उनमें (पहले के) तीन समुद्घात होते हैं। शेष पूर्ववत् यावत् पहले अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, यहाँ तक जानना / 4. एवं सोलससु वि जुम्मसु / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / ॥पढमे बेदियमहाजुम्मसते : पढमो उद्देसनो समत्तो // 36-1-1 // [4] इसी प्रकार द्वीन्द्रिय जीवों के सोलह महायुग्मों में कहना चाहिए।' 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // छत्तीसवां शतक : प्रथम अवान्तरशतक : प्रथम उद्देशक सम्पूर्ण // 1. द्वीन्द्रिय जीवों के 16 महायुग्मों को 32 द्वारों द्वारा प्ररूपित किया गया है। 32 द्वारों के लिए देखिए...भगवतीसूत्र शतक 11 का द्वितीयसूत्र / —वियाहपणत्तिसुत्तं भा. 3 (मू. पा. टि.), पृ. 1155 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org