________________ [व्याख्याप्राप्तिसूत्र तेजकाइएसु दुविहेसु, याउकाइएसु चउशिवहेसु, बणस्सतिकाइएसु बउविधेसु उववज्जति ते वि एवं वेव दुसमइएण वा विगहेण उवधातेयवा।। [35] जो बादरतेजस्कायिक अपर्याप्त और पर्याप्त जीव मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके शर्कराप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में, चारों प्रकार के पृथ्वीकायिक जीवों में, चारों प्रकार के अप्कायिक जीवों में, दो प्रकार के तेजस्कायिक जीवों में और चार प्रकार के वायुकायिक जीवों में तथा चार प्रकार के वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, उनका भी दो या तीन समय की विग्रहगति से उपपात कहना चाहिए। 36. बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा पज्जत्तगा य जाहे तेसु चेय उववज्जति ताहे जहेव रयणप्पभाए तहेव एगसमइय-दुसमइय-तिसमइया विग्गहा भाणियन्वा, सेसं जहेव रयणप्पभाए तहेव निरवसेसं। [36] जब पर्याप्त और अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव उन्हीं में उत्पन्न होते हैं, तब उनके सम्बन्ध में रत्नप्रभापृथ्वी-सम्बन्धी कथन के अनुसार एक समय, दो समय या तीन समय की विग्रहगति कहनी चाहिए / शेष सब कथन रत्नप्रभापृथ्वी-सम्बन्धी कथन के अनुसार जानना चाहिए। 37. जहा सक्करप्पभाए क्त्तव्वया भणिया एवं जाव अहेसत्तमाए भाणियस्वा / [37] जिस प्रकार शर्कराप्रभा-सम्बन्धी वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार यावत् अधःसप्तमपृथ्वी-पर्यन्त कहनी चाहिए। विवेचन--विग्रहगति एवं श्रेणी का लक्षण-एक स्थान में मरण करके दूसरे स्थान पर जाते हुए जीव की जो गति होती है. उसे विग्रहगति कहते हैं / वह श्रेणी के अनुसार होती है। जिससे जीव और पुद्गलों को गति होती है, ऐसी प्राकाश-प्रदेश की पंक्ति को श्रेणी कहते हैं। जीव और पुद्गल एक स्थान से दूसरे स्थान पर श्रेणी के अनुसार ही जा सकते हैं। वे श्रेणियाँ सात हैं, जिनक मूलपाठ में किया गया है। वे इस प्रकार हैं 1. ऋज्वायता—जिस श्रेणी के द्वारा जीव ऊर्ध्वलोक प्रादि से अधोलोक आदि में सीधे चले जाते हैं, उसे 'ऋज्वायताश्रेणी' कहते हैं। इस श्रेणी के अनुसार जाने वाला जीव एक ही समय में गन्तव्य स्थान पर पहँच जाता है। 2. एकतोवका-जिस श्रेणी से जीव सीधा जाकर एक ओर वक्तगति पाये, अर्थात् मोड़ खाए या दूसरी श्रेणी में प्रवेश करे उसे 'एकतोवाश्रेणी' कहते हैं। इस श्रेणी से जाने वाले जीव को दो समय लगते हैं। 3. उभयतोवका-जिस श्रेणी से जाता हा जीव दो बार वक्रगति करे, अर्थात् दो बार दूसरी श्रेणी को प्राप्त करे, उसे 'उभयतोवक्रा श्रेणी' कहते हैं। इस श्रेणी से जाते में जीव को तीन समय लगते हैं। यह श्रेणी प्राग्नेयी (पूर्व-दक्षिण) दिशा से अधोलोक की वायव्यी ( उत्तर-पश्चिम ) दिशा में उत्पन्न होने वाले जीव की होती है। पहले समय में वह आग्नेयीदिशा से तिर्छा पश्चिम की ओर दक्षिणदिशा के कोण अर्थात् नैऋत्य दिशा की ओर जाता है / फिर दूसरे समय में वहाँ से तिर्छा होकर उत्तर-पश्चिम कोण अर्थात् वायव्यीदिशा की ओर जाता है। तदनन्तर तीसरे समय में नीचे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org