________________ पढमे एगिदियमहाजुम्मसए : बिइओ उद्देसगो प्रथम एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : द्वितीय उद्देशक 1. पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कसो उक्वन्जंति ? गोयमा ! तहेव / [1 प्र.] भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [1 उ.] गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए / 2. एवं जहेव पढमो उद्देसयो तहेव सोलसखुत्तो वितियो वि भाणियब्वो। तहेव सव्वं / नवरं इमाणि दस नाणताणि--ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जहभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं / पाउयकम्मस्स नो बंधगा, अबंधगा। पाउयस्स नो उदोरगा, अणुदोरगा। नो उस्सासगा, नो निस्सासमा, नो उस्सासनिस्सासगा / सत्तविहवंधगा, नो अविहबंधगा। [2] इसी प्रकार जैसे प्रथम उद्देशक में (उत्पाद-परिमाण) कहा है, वैसे द्वितीय उद्देशक में भी उत्पाद-परिमाण सोलह बार कहना चाहिए / अन्य सब कथन पूर्ववत् ही है / किन्तु इन दस बातों में भिन्नता (नानात्व) है। यथा--(१) अवगाहना--जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग है और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग है / (2-3) आयुष्यकर्म के बन्धक नहीं, प्रबन्धक होते हैं / (4-5) आयुष्य कर्म के ये उदोरक नहीं, अनुदोरक होते हैं / (6-7-8) ये उच्छवास, निःश्वास तथा उच्छ्वास-निःश्वास से युक्त नहीं होते और (9-10) ये सात प्रकार के कर्मों के बन्धक होते हैं, अष्टविधकर्मों के बन्धक नहीं होते / 3. ते णं भंते ! पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिय' ति कालतो केवचिरं० ? गोयमा! एक्कं समयं / [3 प्र.] भगवन् ! वे प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म-कृतयुग्म राशिरूप एके न्द्रिय जीव काल की ___ अपेक्षा कितने काल तक होते हैं ? {3 उ.] गौतम ! वे एक समय तक होते हैं / 4. एवं ठितो वि / समुग्धाया आइल्ला दोन्नि / समोहया न पुच्छिज्जति / उब्वट्टणा न पुच्छिज्जइ / सेसं तहेव सव्वं निरवसेसं सोलससु वि गमएसु जाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / // पढमे एगिदिय-महाजुम्मसए : विइयो उद्देसओ समतो // 3512 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org