________________ तइए एगिदियमहाजुम्मसए : पढमाइ-एक्कारसपज्जता उद्देसगा तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त कृष्णलेश्याविशिष्टशलक के अतिदेशपूर्वक नीललेश्याशतक-प्ररूपणा 1. एवं नीललेस्सेहि वि कण्हलेस्ससयसरिसं, एक्कारस उद्देसगा तहेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! 0 // 35 // 331-11 // // पंचतीसइमे सए : ततियं एगिदियमहाजुम्मसयं समत्तं // 35-3 // [1] नीललेश्या वाले एकेन्द्रियों का शतक भी कृष्णलेश्यावाले एकेन्द्रियों के शतक के समान कहना चाहिए। इसके भी ग्यारह उद्देशकों का कथन उसी प्रकार है / __ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक तक समाप्त // // पैंतीसवां शतक : तृतीय एकेन्द्रियमहायुग्मशतक सम्पूर्ण / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org