________________ [699 पैतीसा शतक : उद्देशक 3-11] 4. पढभपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएंगिदिया णं भंते ! को उववज्जति ? जहा पढमसमयउद्देसमो तहेव निरवसेसं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाब विहरइ // 35 // 1 // 6 // [4 प्र.] भगवन् ! प्रथमप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्म राशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [4 उ.] गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशक के अनुसार समग्र कथन करना चाहिए / / 1-6 // 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। 5. पढम-अपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कसो उववज्जंति ? जहा पढमसमयउद्देसो तहेव भाणियन्वो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 35 // 17 // [5 प्र.] भगवन् ! प्रथम-अप्रथमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [5 उ.] गौतम ! इसका समग्र कथन प्रथमसमय के उद्देशकानुसार करना चाहिए // 1-7 / / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है 0 2', यों कह कर श्री गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं / 6. पढम-चरिमसमयकङजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! को उबवज्जति ? जहा चरिमुद्देसनो तहेव निरवसेसं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० // 35 // 18 // [6 प्र.] भगवन् ! प्रथम-चरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? [6 उ.] गौतम ! इनका समस्त निरूपण चरमउद्देशक के अनुसार जानना चाहिए // 18 // 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है० 2', यों कह कर श्री गौतम-स्वामी यावत् विचरते हैं / 7. पढम-प्रचरिमसमयकउजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कतो उववज्जंति ? जहा बीओ उद्देसनो तहेव निरवसेसं। सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ // 35 // 16 // [7 प्र.] भगवन् ! प्रथम-अचरमसमय के कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? [7 उ.] गौतम ! इनका समस्त निरूपण दूसरे उद्देशक के अनुसार जानना चाहिए // 1-9 / / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', इत्यादि पूर्ववत् / / . चरिम-चरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिदिया गं भंते ! को उबवज्जति ? जहा चतुत्थो उद्देसनो तहेव / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० // 35 // 1 // 10 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org