________________ 672] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [67] पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम चरमान्त में ही उत्पन्न होने वाले पृथ्वीकायिक के लिए स्वस्थान में उपपात के अनुसार कथन करना चाहिए। उत्तर-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव के एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष सब पूर्ववत् / पूर्वीय-चरमान्त में उपपात का कथन स्वस्थान में उपपात के समान है / दक्षिण-चरमान्त में उपपात में एक समय की विग्रगति नहीं होती। शेष सब पूर्ववत् है / 68. उत्तरिल्ले समोहयाणं उत्तरिल्ले चेव उववन्जमाणाणं जहा सटाणे / उत्तरिल्ले समोहयाणं पुरस्थिमिल्ले उववज्जमाणाणं एवं चेव, नवरं एगसमइनो विग्गहो नथि / उत्तरिल्ले समोहताणं दाहिणिल्ले उक्वज्जमाणाणं जहा सट्टाणे / उत्तरिल्ले समोहयाणं पच्चथिमिल्ले उववज्जमाणाणं एगसमइयो विग्गहो नत्थि, सेसं तहेब जाव सुहमवणस्सतिकाइनो पज्जत्तओ सुहुमवणस्सतिकाइएसु पज्जत्तएसु चेव। [68] उत्तर-चरमान्त में समुद्घात करके उत्तर-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीव का कथन स्वस्थान में उपपात के समान जानना चाहिए / इसी प्रकार उत्तर-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वीयचरमान्त में उत्पन्न होने वाले पृथ्वी कायिकादि जीवों के उपपात का कथन समझना किन्तु इनमें एक समय की विग्रहगति नहीं होती / उत्तर-चरमान्त में समुद्धात करके दक्षिण-चरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीवों का कथन भी स्वस्थान के समान है। उत्तर-चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिमचरमान्त में उत्पन्न होने वाले जीवों के एक समय की विग्रहगति नहीं होती। शेष पूर्ववत् यावत् पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक का पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों तक में उपपात का कथन जानना चाहिए। विवेचन-तीन या चार समय की विग्रहगति क्यों और कहाँ-जब कोई स्थावर अधोलोकक्षेत्र की नाडी के बाहर पूर्वादि दिशा में मर कर प्रथम समय में सनाडी में प्रवेश करता है, दूसरे समय में ऊपर जाता है और तत्पश्चात् एक प्रतर में पूर्व या पश्चिम में उसकी उत्पत्ति होती है, तब अनुश्रेणी में जाकर तीसरे समय में उत्पन्न होता है / इस प्रकार तीन समय की विग्रहगति होती है।। जब कोई जीव त्रसनाडी के बाहर वायव्यादि विदिशा में मृत्यु को प्राप्त होता है, तब एक समय में पश्चिम या उत्तर दिशा में जाता है, दूसरे समय में त्रसनाडी में प्रवेश करता है, तीसरे समय में ऊँचा जाता है और चौथे समय में अनुश्रेणी में जाकर पूर्वादि दिशा में उत्पन्न होता है। यहाँ चार समय की विग्रहगति होती है। __दो या तीन समय को विग्रहगति कब और क्यों? –जब अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक जीव ऊर्ध्वलोक की असनाडी के बाहर उत्पन्न होता है, तब दो या तीन समय की विग्रहगति होती है। इसका कारण यह है कि बादरतेजस्काय मनुष्यक्षेत्र में ही होता है। इसलिए एक समय में मनुष्यक्षेत्र से ऊपर जाता है तथा दूसरे समय में सनाडी से बाहर रहे हुए उत्पत्तिस्थान को प्राप्त होता है / इस प्रकार यह दो समय को विग्रहगति होती है / अथवा एक समय में मनुष्यक्षेत्र से ऊपर जाता है, दूसरे समय में त्रसनाडी से बाहर पूर्वादि दिशा में जाता है और तीसरे समय विदिशा में रहे हुए उत्पत्तिग्थान को प्राप्त होता है। लोक के चरमान्त में बादर पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक और वनस्पतिकायिक जीव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org