________________ पढमे एगिदियसए : चउत्थाइ-एक्कारसमपज्जंता उद्देसगा प्रथम एकेन्द्रियशतक : चौथे से ग्यारहवें उद्देशक पर्यन्त चौथे से ग्यारहवें उद्देशक तक प्ररूपणा 1. एवं सेसा वि अट्ट उद्देसगा जाव अचरिमो त्ति / नवरं अणंतरा० अणंतरसरिसा, परंपरा० परंपरसरिसा / चरिमा य, प्रचारमा य एवं चेव / एवं एते एक्कारस उद्देसगा। // पढम एगिदियसे ढिसयं समत्तं // 34-1 // [1] इसी प्रकार शेष आठ उद्देशक भी यावत् 'अचरम' तक जानने चाहिए। विशेष यह है कि अनन्तर-उद्देशक अनन्तर के समान और परम्पर-उद्देशक परम्पर के समान कहना चाहिए। चरम और अचरम सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार है / इस प्रकार ये ग्यारह उद्देशक हुए। // प्रथम एकेन्द्रियशतक : चार से ग्यारह उद्देशक पर्यन्त समाप्त // // चौतीसवां शतक : प्रथम एकेन्द्रियशतक सम्पूर्ण // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org