________________ 692] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र यावत् लोभकषायी होते हैं। वे स्त्रीवेदी या पुरुषवेदी नहीं होते, किन्तु नसकवेदी होते हैं। वे स्त्रीवेदबन्धक पुरुषवेद-बन्धक या नपुंसकवेद-बन्धक होते हैं। वे सजी नहीं होते, असंज्ञी होते हैं। वे सइन्द्रिय होते हैं, अनिन्द्रिय नहीं होते / 13. ते णं भंते ! 'कडजुम्मकडजुम्मगिदिय' त्ति कालो केवचिरं होंति ? गोयमा ! जहन्नेणं एषकं समयं, उनकोसेणं अणंतं कालं' -अणंतो वणस्सतिकालो। संवेहो न भण्णइ अाहारो जहा उप्पलुद्देसए (स० 11 उ०१ सु०४०), नवरं निग्वाघाएणं छसि, वाघायं पडुच्च सिय तिदिसि, सिय चतुर्दिसि, सिय पंचदिसि / सेसं तहेव / ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, (अंतोमुत्तं), उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई / समुग्घाया आइल्ला चत्तारि, मारतियसमुग्धाएणं समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति / उच्वट्टणा जहा उप्पलुद्देसए (स० 11 उ० 1 सु० 44) / [13 प्र.] भगवन् ! वे कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक होते हैं ? [13 उ. गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल—अनन्त (उत्सपिणी अव. सर्पिणीरूप) बनस्पतिकाल-पर्यन्त होते हैं / यहाँ संवेध का कथन नहीं किया जाता। इनका आहार उत्पलोद्देशक (श. 11, उ. 1, सू. 40) के अनुसार जानना, किन्तु वे व्याघात रहित छह दिशा का और व्याघात हो तो कदाचित् तीन, चार या पांच दिशा से आहार लेते हैं। इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है / इनमें आदि (पहले) के चार समुद्घात पाये जाते हैं / ये मारणान्तिक समुद्घात से समवहत अथवा असमवहत होकर मरते हैं। इनकी उद्वर्तना उत्पलोद्देशक के अनुसार जाननी चाहिए। 14. अह भंते ! सध्वपाणा जाव सध्वसत्ता कडजुम्मकडजुम्मएगिदियत्ताए उववन्नपुवा ? हंता गोयमा ! असई अदुवा अणंतखुत्तो। [14 प्र.] भगवन् ! समस्त प्राण, भूत, जीव और सत्त्व क्या कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रियरूप से पहले उत्पन्न हुए हैं ? [14 उ.] हाँ, गौतम ! वे अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं। विवेचन–कृतयुग्म-कृतयुग्म-एकेन्द्रिय जीवों के विषय में कुछ स्पष्टीकरण--जिन एकेन्द्रिय जीवों में से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार बचें और अपहार-समय भी चार हों, वे कृतयुग्म-कृतयुग्म एकेन्द्रिय कहलाते हैं / यहाँ प्रायः ग्यारहवें शतक के प्रथम उत्पलोद्देशक का अतिदेश किया गया है। एकेन्द्रिय जीवों में संवेध असम्भव क्यों ?-उत्पलोद्देशक में उत्पल यानी कमल के जीव की उत्पत्ति विवक्षित हो और वह पृथ्वीकायादि दूसरी काय में जाए और फिर उत्पल में प्राकर उत्पन्न हो तब उसका संवेध संभावित होता है, किन्तु प्रस्तुत में कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय का प्रकरण है और एकेन्द्रिय तो अनन्त उत्पन्न होते हैं। उनमें से निकल कर वे विजातीयकाय में उत्पन्न हों और 1. अधिकपाठ-किसी किसी प्रति में यहाँ इतना पाठ अधिक है-'अयंता ओस प्पिणि-उत्सपिणीओ.......।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org