________________ 69.] [व्याल्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2 उ.] गौतम ! जिस प्रकार (भ. शतक 11, उ. 1, सू. 5) उत्पलोद्देशक में उपपात कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी उपपात कहना चाहिए / 3. ते णं भंते ! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जति ? गोयमा ! सोलस वा, संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अणंता वा उववज्जति / [3 प्र.] भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? [3 उ.] गौतम ! वे एक समय में सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं। 4. ते णं भंते ! जीवा समए समए० पुच्छा। गोयमा ! ते णं अणंता समए समए अबहीरमाणा अबहीरमाणा अणताहि प्रोसस्पिणिउस्सप्पिणीहि अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया लिया। [4 प्र. भगवन् ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक-एक अपहृत किये जाएं तो कितने काल में अपहृत (रिक्त) होते हैं ? [4 उ.] गौतम ! यदि वे अनन्त जीव समय-समय में अपहृत किये जाएँ और ऐसा करते हुए अनन्त अवसपिणी और उत्सपिणी बीत जाएँ तो भी वे अपहृत (रिक्त, खाली) नहीं हो पाते / (किन्तु ऐसा किसी ने किया नहीं)। 5. उच्चत्तं जहा उप्पलुद्देसए (स० 11 उ० 1 सु० 8) / [5] इनकी ऊँचाई उत्पलोद्देशक (श. 11, उ. 1, सू. 8) के अनुसार जानना चाहिए। 6. ते णं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कि बंधगा, प्रबंधगा ? गोयमा ! बंधगा, नो अबंधगा / [6 प्र.] भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं या प्रवन्धक ? [6 उ.] गौतम ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं, प्रबन्धक नहीं / 7. एवं सम्वेसि श्राउयवज्जाणं, आउयस्स बंधगा वा, अबंधगा वा। [7] इसी प्रकार वे जीव आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेप सभी कमों के बन्धक है / प्रायुष्य कर्म के वे बन्धक भी हैं और अबन्धक भी। 8. ते गं भंते ! जीवा नाणावरणिज्जस्स० पुच्छा। गोयमा ! वेदगा, नो अवेदगा। [8 प्र.] भगवन ! वे जीव ज्ञानावरणीय कर्म के बेदक हैं या अवेदक ? [8 उ.] गौतम ! वे ज्ञानावरणीयकर्म के वेदक हैं, अबेदक नहीं। 6. एवं सब्वेसि। [1] इसी प्रकार सभी कर्मों के विषय में जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org