________________ पंतीसवां शतक : उद्देशक 1] [689 अपहार से अपहन करते हुए एक शंष रहे और उस राशि के अपहार-समय द्वापरयुग्म हों, तो वह राशि द्वापरयुग्मकल्योज कहलाती है, (13) जिस राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए चार शेप रहें और उस राशि का अपहार-समय कल्योज (एक) हो तो वह राशि कल्योजकृतयुग्म कहलाती है, (14) जिम राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए तीन शेष रहें और उस राशि का अपहार-समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजयोज कहलाती है। (15) जिम राशि में से चार संख्या के अपहार से अपहृत करते हुए दो बचें और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, और (16) जिस राशि में से चार से अपहत करते हए एक शेष रहे और उस राशि का अपहार-समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजकल्योज कहलाती है। इसी कारण से हे गौतम ! (कृतयुग्मकृतयुग्म से लेकर) यावत् कल्योजकल्योज तक कहा गया है। विवेचन–महायुग्म : स्वरूप प्रकार और जघन्य संख्या--'युग्म' राशिविशेष को कहते हैं और वे युग्म क्षुल्लक (छोटे) भी होते हैं और महान् (बड़े) भी होते हैं। क्षुल्लकयुग्मों का वर्णन पहले किया जा चुका है / उनसे इनका अन्तर बताने हेतु इस शतक में 'महायुग्म' का वर्णन प्रारम्भ किया जाता है / महायुग्म सोलह हैं, जिनका नाम और संक्षिप्त स्वरूप मूलपाठ में ही बता दिया गया है। उदाहरणार्थ सर्वप्रथम महायुग्म का नाम 'कृतयुग्मकृतयुग्म' है / यह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म इसलिए कहलाती है कि जिस राशि में से प्रतिसमय चार-चार के अपहार से अपहृत करते हुए अन्त में चार शेष रहें और अपहार-समय भी चार हों, क्योंकि जिस द्रव्य में से अपहरण किया जाता है, वह द्रव्य भी कृतयुग्म है और अपहरण के समय भी कृतयुग्म (चार) हैं। अत: ऐसी राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है। इसी प्रकार अन्य राशियों का स्वरूप भो शब्दार्थ से जान लेना चाहिए। यथा--१६ की संख्या जघन्य कृतयुग्मकृतयुग्म-राशिरूप है, क्योंकि उसमें से चार संख्या से अपहार करते हुए अन्त में चार शेष रहते हैं और अपहारसमय भी चार होते हैं। कृतयुग्मयोज इस प्रकार है-जधन्य 16 की संख्या में से प्रतिसमय चार का अपहार करते हुए अन्त में तीन शेष रहते हैं और अपहार-समय चार शेष होते हैं / इस प्रकार अपहरण किये जाने वाले द्रव्य की अपेक्षा वह राशि व्योज है और अपहारसमय की अपेक्षा 'कृतयुग्म' है। अतएव इस राशि को कृतयुग्मयोज कहा जाता है। यहाँ सर्वत्र अपहारक समय की अपेक्षा पहला पद है और अपहार किये जाने वाले द्रव्य की अपेक्षा दुसरा पद है / इन सोलह महायुग्मों की जघन्य संख्या इस प्रकार है-(१) सोलह प्रादि, (2) उन्नोस आदि, (3) अठारह आदि, (4) सत्रह आदि, (5) बारह आदि, (6) पन्द्रह आदि, (7) चौदह आदि, (8) तेरह आदि, (9) आठ आदि, (10) ग्यारह प्रादि, (11) दस आदि, (12) नौ आदि, (13) चार प्रादि, (14) सात प्रादि, (15) छह आदि और (16) पांच आदि / ' कृतयुग्म-कृतयुग्म-राशियुक्त एकेन्द्रियमहायुग्मों में उपपातादि बत्तोस द्वारों की प्ररूपणा 2. कडजुम्मकडजुम्मएगिदिया णं भंते ! कसो उवधज्जति ? कि नेरइय० ? जहा उप्पलुद्देसए (स० 11 उ० 1 सु० 5) तहा उववातो। [2 प्र.] भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्दिय जीव कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों के प्राकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 1. भगवतो. अ. वृत्ति, पत्र 965-966 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org