________________ 684] [भ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 5. कहिणं भंते ! परंपरोववन्नकण्हलेस्सभवसिद्धियपज्जत्तबायरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता? एवं एएणं अभिलावेणं जहेब प्रोहिओ उद्देसओ जाव तुल्लद्वितीय त्ति। 5 प्र. भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यीभवसिद्धिक पर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? [5 उ.] गौतम ! इसी प्रकार इस अभिलाप से पोषिक उद्देशक. याव तुल्य स्थिति-पर्यन्त जानना चाहिए। 6. एवं एएणं अभिलावेणं कण्हलेस्सभवसिद्धियएंगिदिएहि वि तहेव / // एक्कारस उद्देसगसंजुत्तं छठें सतं समत्तं // 34-6 // 6] इसी प्रकार इस अभिलाप से कृष्णलेश्यीभवसिद्धिक के सम्बन्ध में भी ग्यारह उद्देशकसहित छठा शतक कहना चाहिए। ॥चौतीसवां शतक: छठा अवान्तरशतक समाप्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org