________________ 670] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [60] इसी प्रकार इसी गमक से पूर्वीय-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में यावत् पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक, पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिक जीवों में भी उपपात का कथन करना चाहिए / इन सभी में यथायोग्य दो समय, तीन समय या चार समय की विग्रहगति कहनी चाहिए। 61. [1] अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणिता जे भविए लोगस्स पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसहमपुढ विकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विगहेणं उववज्जेम्जा ? गोयमा ! एगसमइएण वा, दुसमइएण वा, तिसमइएण वा, चउसमइएण वा विगहेणं उववज्जेज्जा। [61-1 प्र.] भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वीय चरमान्त में समुद्घात करके लोक के पश्चिम-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-रूप में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [61-1 उ.] गौतम ! वह एक, दो, तीन अथवा चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है। [2] से केणठेणं० ? एवं जहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहया पुरथिमिल्ले चेव चरिमते उववातिता तहेव पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहया पच्चथिमिल्ले चरिमंते उववातेयव्वा सव्वे / [61-2 प्र. भगवन् ! किस कारण से कहते हैं कि वह यावत् चार समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [61-2 उ.] गौतम ! पूर्ववत्, जैसे पूर्वीय-चरमान्त में समुद्घात करके पूर्वीय-चरमान्त में ही उपपात का कथन किया, वैसे ही पूर्वीय चरमान्त में समुद्घात करके पश्चिम-चरमान्त में सभी के उपपात का कथन कर 62. अपज्जत्तसहमपुढविकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमते समोहए, समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते !.? एवं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहम्रो दाहिणिल्ले चरिमते उववातिओ तहा पुरथिमिल्ले. समोहम्रो उत्तरिल्ले चरिमंते उववातेयत्वो। [62 प्र.] भगवन् ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपथ्वीकायिक जीव, लोक के पूर्वीय-चरमान्त में समुद्धात करके लोक के उत्तर-चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव में उत्पन्न होने योग्य है तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [62 उ.] गौतम ! जिस प्रकार पूर्वीय-चरमान्त में समुद्घात करके दक्षिण-चरमान्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .