________________ 660] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मरणसमुद्धात करके इस रत्नप्रभापथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में बादर वनस्पतिकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हो तो, हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? . __[उ.] पूर्ववत् सब कथन यावत्-'इस कारण से ऐसा कहा जाता है', तक करना चाहिए / 240+80 +80 = 400 / 27. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए गं भंते ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते समोहणित्ता जे भविए इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए से गं भंते ! कइसमइएणं० ? सेसं तहेव निरवसेसं। [27 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पश्चिम-चरमान्त में समुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वीय चरमान्त में अपर्याप्त सक्ष्म पृथ्वी कायिक-रूप से उत्पन्न हो तो कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? . [27 उ.] गौतम ! पूर्ववत् समस्त कथन करना चाहिए / 28. एवं जहेब पुरथिमिल्ले चरिमंते सव्वपदेसु वि समोया पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातिया, जे य समयखेत्ते समोया परथिमिल्ले चरिमंते समयखेले य उववातिया, एवं एएणं चैव कमेणं पच्चथिमिले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया पुरथिमिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववालयव्वा तेणेव गभएणं / 400 - 800 / [28] जिस प्रकार पूर्वीय-चरमान्त के सभी पदों में समुद्घात करके पश्चिम-च रमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में और जिनका मनुष्यक्षेत्र में समुद्घातपूर्वक पश्चिम-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहा, उसी प्रकार उसी क्रम से पश्चिम-चरमान्त में मनुष्यक्षेत्र में समुद्धातपूर्वक पूर्वीयचरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र के उसी गमक से उपपात होता है। +400 = 800 / / 29. एवं एतेणं गमएणं दाहिणिल्ले चरिमंते समोहयाणं समयखेत्ते य, उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववाो / 400 = 1200 / [26] और इसी गमक से दक्षिण के चरमान्त में समुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में और उत्तर के चरमान्त में तथा मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए। +400-1200 / / 30. एवं चेव उत्तरिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य समोहया, दाहिणिल्ले चरिमंते समयखेत्ते य उववातेयव्वा तेणेव गमएणं / 400 = 1600 / [30] इसी प्रकार उत्तरी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में समुद्घात करके दक्षिणी-चरमान्त में और मनुष्यक्षेत्र में उपपात कहना चाहिए / +400 = 1600 / 31. अपज्जत्तसुहमपुढ विकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए सक्करप्पभाए पुढबीए पच्चथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहमपुढविकाइयत्ताए उवव० ? एवं जहेब रयणप्पभाए जाव से तेणठेणं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org