________________ चौतीसवां शतक : उई शक 1) [659 सेसं तं चेव / 1-211 / 21 प्र. भगवन् ! अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में मरणसमुद्घात करके मनुष्यक्षेत्र में अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [21 उ.] गौतम ! (इसका उपपात) पूर्ववत् कहता चाहिए / / + 1 =-211 / 22. एवं पज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए वि उ वाएयव्वो। 1-212 / [22] इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक रूप से उपपात का भी कथन करना चाहिए। + 1 = 212 / / 23. वाउकाइयत्ताए य, वणस्सतिकाइयत्ताए य जहा पुढविकाइएसु तहेब चउक्कएणं भेएणं उववाएयव्यो। 5-220 / [23] जिस प्रकार (चार प्रकार के) पृथ्वीकायिक जीवों के उपपात के विषय में कहा, उसो प्रकार चार भेदों से, वायुकायिक रूप से तथा वनस्पतिकायिक रूप से उपपात का कथन करना चाहिए।+८-२२० / / 24. एवं पज्जत्तबायरतेउकाइयो वि समयखेते समोहणावेत्ता एएसु चेव बोसाए ठाणेसु उववातेयवो जहेव अपज्जत्तओ उववातिओ। 20 / [24] इसी प्रकार पर्याप्त बादर तेजस्कायिक का भी समय (मनुष्य-) क्षेत्र में समुद्घात करके इन्हीं (पूर्वोक्त) बीस स्थानों में उपपात का कथन करना चाहिए / / 20 / / 25. एवं सम्वत्थ वि बायरतेउकाइया अपज्जत्तगा पज्जसगा य समयखेत्ते उववातेयख्वा, समोहणावेयब्वा वि - 240 / [25] जिस प्रकार अपर्याप्त का उपपात कहा है, उसी प्रकार पर्याप्त और अपर्याप्त-वादर तेजस्कायिक के मनुष्यक्षेत्र में समुद्धात और उपपात का कथन करना चाहिए / = 240 / / 26. बाउकाइया, वणस्ततिकाइया य महा पुढविकाइया तहेव चउक्कएणं भेएणं उपवातेयम्बा जाय। पज्जत्तबायरवणस्सइकाइए णं भंते ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणेत्ता जे भविए इमोसे रयणप्पभाए० पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते पज्जत्तबायरवणस्सतिकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसम ? सेसं तहेव जाव से तेणठेणं० / 80-5-20 = 400 / [26] पृथ्वी कायिक-उपपात के समान चार-चार भेद से वायुकायिक और वनस्पतिकायिक . जीवों का उपपात कहना चाहिए; यावत् [प्र.] भगवन् ! पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वीय-चरमान्त में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org