________________ चौतीसवां शतक : उद्देशक 1] [657 अपर्याप्तक का, (2) उन्हीं (सूक्ष्म) के पर्याप्तक का, (3) बादर-अपर्याप्तक का तथा (4) उन्हीं (बादर) के पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए / 7. एवं चेव सुहमतेउकाइएहि वि अपज्जत्तहि 1, ताहे पज्जत्तएहि उववातेयव्यो 2 / [7] और इसी प्रकार सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक और उसी के पर्याप्तक का उपपात कहना चाहिए। 8. अपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोह णित्ता जे भविए मणुस्सखेत्ते अपज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! कतिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा? सेसं तं चेव३ / [8 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव, जो इस रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व दिशा के चरमान्त में मरण समुद्घात करके मनुष्य-क्षेत्र में अपर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य है, तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? [8 उ.] गौतम ! (इस सम्बन्ध में) सब वक्तव्यता पूर्ववत् कहनी चाहिए / 9. एवं पज्जत्तबायरतेउकाइयत्ताए उववातेयव्यो 4 / [6] इसी प्रकार पर्याप्त बादरतेजस्कायिक रूप से उपपात का कथन करना चाहिए / 10. वाउकाइए सुहुम-बायरेसु जहा आउकाइएसु उववातियो तहा उववातेयच्यो 4 / 1.] जिस प्रकार सूक्ष्म और बादर अप्कायिक का उपपात कहा, उसी प्रकार सूक्ष्म और बादर वायुकायिक का उपपात कहना चाहिए। 11. एवं वणस्सतिकाइएसु वि 4, 20 // [11] इसी प्रकार (सुक्ष्म और बादर) वनस्पति कायिक जीवों के उपपात के विषय में भी कहना चाहिए / / 20 // 12. पज्जत्तसुहुमपुढविकाइए णं भंते ! इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए० ? एवं पज्जत्तसुहमपुद विकाइनो वि पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहणावेत्ता एएणं चेव कमेणं एएसु चेव वीससु ठाणेसु उक्वातेयन्वो जाव बायरवणस्सतिकाइएसु पज्जत्तएसु ति / 40 / {12 प्र. भगवन् ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी के इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न ? [12 उ.] गौतम ! पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव भी रत्नप्रभा पृथ्वी के पूर्व दिशा के चरमान्त में मरण समुद्घात से मर कर क्रमशः इन बोस स्थानों में यावत् बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक तक, उपपात कहना चाहिए / / = 40 / / 13. एवं अपज्जतबायरपुढविकाइओ वि / 60 / {13] इसी प्रकार अपर्याप्त बादर पथ्वीकायिक का उपपात भी कहना चाहिए। / / =60 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org