________________ तइए एगिदियसए पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा तृतीय एकेन्द्रियशतक : पहले से ग्यारहवें पर्यन्त उद्देशक द्वितीय एकेन्द्रियशतकानुसार तृतीय नीललेश्यी एकेन्द्रियशतक-वक्तव्यता 1. जहा कण्हलेस्सेहिं एवं नीललेस्से हि वि सयं भाणितत्वं / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / // तेत्तीसइमे : तलिए एंगिदियसए पढमाइ-एक्कारस-पज्जंता उद्देसगा समत्ता / // तेतीसइमे सए : ततियं एगिदियसयं समत्तं // 36-3 // [1] जैसे कृष्णलेश्यो एकेन्द्रियविषयक शतक कहा, वैसे ही नीललेश्यी एकेन्द्रिय जीवों के विषय में भी समग्र शतक कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // तेतीसवां शतक : तृतीय एकेन्द्रिय शतक : पहले से ग्यारहवें उद्देशक-पर्यन्त समाप्त / // तेतीसवां शतक : ततीय एकेन्द्रियशतक सम्पूर्ण // 33-3 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org