________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्रे 6. एवं जाव वणस्सतिकाइया। [6] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीव-पर्यन्त जानना / विवेचन-एकेन्द्रिय जीवों का परिवार-प्रस्तुत 6 सूत्रों (1 से 6 तक) में एकेन्द्रिय जीवों के मुख्य 5 भेद बताकर, फिर पृथ्वीकायिक आदि पांचों के प्रत्येक के सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चार-चार भेद बताए हैं / इस प्रकार पांचों प्रकार के एकेन्द्रिय जीवों के कुल 544-20 भेद हुए। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति, इन पांचों एकेन्द्रिय जीवों में जीवत्व (आत्मा) की सिद्धि प्रागम, वृत्ति एवं जीवविज्ञान से सिद्ध है / एकेन्द्रिय जीवों को कर्मप्रकृतियां, उनके बन्ध और वेदन का निरूपण 7. अपज्जत्तासुहमपुढ विकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीयो पन्नतातो ? गोयमा ! अट्ट कम्मप्पगडीओ पन्नत्तानो, तं जहा-नाणावरणिज्जं जाव अंतरायियं / [7 प्र. भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितने कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? 7 उ.] गौतम ! उनके पाठ कर्मप्रकृतियाँ कही हैं / यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म / 8. पज्जत्तासुहमपुढविकाइयाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीयो पन्नताप्रो ? गोयमा ! अट्ट कम्मप्पगडीओ पनत्तानो, तं जहा-नाणावरणिज्ज जाव अंतरायियं / 8.] भगवन् ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? [8 उ.] गौतम ! उनके पाठ कर्म-प्रकृतियाँ कही हैं / यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकम। 6. अपज्जत्ताबायरपुढधिकायियाणं भंते ! कति कम्मपगडीओ पन्नातायो? एवं चेव। [प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तबादरपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियां कही हैं ? [9 उ.] गौतम ! उनके भी पूर्ववत् पाठ कर्मप्रकृतियाँ हैं / 10. पज्जत्ताबायरपुढविकायियाणं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ० ? एवं चेव / [10 प्र. भगवन् ! पर्याप्तबादरपथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? [10 उ.] गौतम ! उनके भी पूर्ववत् आठ कर्मप्रकृतियाँ हैं / 11. एवं एएणं कमेणं जाय बायरवणस्सइकाइयाणं पज्जत्तगाणं ति। [11] इसी प्रकार इसी क्रम से (अपर्याप्तसूक्ष्मअप्कायिक से लेकर) यावत् पर्याप्सबादर वनस्पतिकायिक जीवों की कर्मप्रकृतियों का कथन करना चाहिए। 12. अपज्जत्तासुहमपुढविकायिया णं भंते ! कति कम्मरपाडोमो बंधति ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org