________________ तेतीतयो शतक : उद्देशक 1] गोयमा! सत्तविहबंधगा वि, अविहबंधगा वि। सत्त बंधमाणा आउयवज्जाश्रो सत्त कम्मप्पगडीयो बंधंति / अट्ठ बंधमाणा पडिपुण्णाश्रो अट्ट कम्मप्पगडीओ बंधति / / [12 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? / [12 उ.] गौतम ! वे सात कर्मप्रकृतियाँ भी बांधते हैं और पाठ भी बांधते हैं। सात बांधते हुए पायुकर्म को छोड़कर शेष सात कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं तथा आठ बांधते हुए सम्पूर्ण पाठ कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं। 13. पज्जत्तासुहमपुटविकायिया णं भंते ! कति कम्म? एवं चेव। [13 प्र.] भगवन् ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? [13 उ.] गौतम ! (ये भी) पूर्ववत् (सात या पाठ कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं / ) 14. एवं सम्बे जाय-पज्जत्तावायरवणस्सतिकायिया गं भंते ! कति कम्मपगडीयो बंधति ? एवं चेव। [14 प्र. भगवन् ! इसी प्रकार शेष सभी (भेद-प्रभेद सहित एकेन्द्रिय जीव) यावत्-पर्याप्तबादरवनस्पतिकायिक जीव-पर्यन्त कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? [14 उ.] गौतम ! (ये सभी यावत् पर्याप्तबादरवनस्पतिकायिक-पर्यन्त) पूर्ववत् (सात या आठ कर्मप्रकृतियां बांधते हैं / ) 15. अपज्जत्तासुहमपुढविकाइया गं भंते ! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा ! चोद्दस कम्मप्पगडीयो वेदेति, तं जहा-नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं, सोतिरिययभं चक्खिदियवझ घाणिदियवझ निम्भिदियवझ इस्थिधेदवझ पुरिसवेदवज्झ / [15 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को वेदन करते (भोगते) हैं। [15 उ.] गौतम ! वे चौदह कर्मप्रकृतियाँ वेदते (भोगते) हैं / यथा--(१-८) ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, (6) श्रोत्रेन्द्रियवध्य (श्रोत्रेन्द्रियावरण), (10) चक्षुरिन्द्रियावरण, (11) घाणेन्द्रियावरण, (12) जिह्वन्द्रियावरण, (13) स्त्रीवेदावरण और (14) पुरुषवेदावरण ! 16. एवं चउक्कएणं भेएणं जाव-पज्जत्ताबायरवणस्सतिकाइया णं भंते ! कति कम्मप्पगडीयो वेदेति ? एवं चैव चोहस। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // तेत्तीसइमे सए : पढमे एगिदियसए : पढमो उद्देसनो समत्तो / / 33-1 / 1 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org