________________ अट्ठमो उद्देसओ : आठवाँ उद्देशक चतुर्विध क्षुद्रयुग्म-कापोतलेश्यो भवसिद्धिक नैरयिकों की उपपात-सम्बन्धी प्ररूपणा 1. काउलेस्सभवसिद्धीय० चउसु वि जुम्मेसु तहेव उववातेयचा नहेव ओहिए काउलेस्सउद्देसए / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरति / // इक्कतीसइमे सए : अट्ठमो उद्देसनो समत्तो // 31.8 / / [1] कापोतलेश्यी भवसिद्धिक नै रयिक के चारों ही युग्मों का कथन औधिक नीललेश्यासम्बन्धी उद्देशक के अनुसार कहना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कहकर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं। // इकतीसवां शतक : पाठवा उद्देशक समाप्त // Jain Education International : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org